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________________ प्रथम उद्देशक] [१३५ भाष्य में द्वार को ढंकने की विधि इस तरह बताई गई है कि बांस या खजूर की छिद्ररहित चटाई या सन-टाट आदि के परदे से द्वार को बाहरी ओर से और भीतरी ओर से भी बन्द करके ठहरना चाहिए। रात्रि के समय उन दोनों परदों को किसी खूटी आदि के ऊपर, बीच में और नीचे इस प्रकार बांधे कि बाहर से कोई पुरुष प्रवेश न कर सके। फिर भी सुरक्षा के लिए बताया गया है कि उस द्वार पर सशक्त साध्वी बारी-बारी से रात भर पहरा देवे तथा रूपवती युवती साध्वियों को गीतार्थ और वृद्ध साध्वियों के मध्य-मध्य में चक्रवाल रूप से स्थान देकर सोने की व्यवस्था गणिनी या प्रवर्तिनी को करनी चाहिए।गणिनीको सबके मध्य में सोना चाहिए और बीच-बीच में सबकी संभाल करतेरहना चाहिए। खुले द्वार वाले स्थान में साधुओं को ठहरने का जो विधान किया गया है उसका कारण स्पष्ट है कि उनके उक्त प्रकार की आशंका की सम्भावना नहीं है। यदि कहीं कुत्ते या चोर आदि की आशंका हो तो साधु को भी यथायोग्य सुरक्षा कर लेनी चाहिये। साधु-साध्वी को घटीमात्रक ग्रहण करने का विधि-निषेध १६. कप्पइ निग्गंथीणं अन्तोलित्तं घडिमत्तयं धारित्तए या परिहरित्तए वा। १७. नो कप्पइ निग्गंथाणं अन्तोलित्तं घडिमत्तयं धारित्तए वा परिहरित्तए वा। १६. निर्ग्रन्थियों को अन्दर की ओर लेपयुक्त घटीमात्रक रखना और उसका उपयोग करना कल्पता है। १७. निर्ग्रन्थों को अन्दर की ओर लेपयुक्त घटीमात्रक रखना और उसका उपयोग करना नहीं कल्पता है। विवेचन-आगम में तीन प्रकार के मात्रक रखने की आज्ञा है, यथा१. उच्चारमात्रक, २. प्रश्रवणमात्रक, ३. खेलमात्रक। यहां भी एक प्रकार के मात्रक का वर्णन है। पूर्व के अनेक सूत्रों में साध्वी की शीलरक्षा हेतु निषेध किये गये हैं और यहां भिक्षु के ब्रह्मचर्यरक्षा हेतु निषेध है। ___ घटीमात्रक एक प्रकार का प्रश्रवणमात्रक ही है। यद्यपि प्रश्रवणमात्रक तो साधु-साध्वी दोनों को रखना कल्पता है तथापि इस मात्रक का कुछ विशेष आकार होता है, उस आकर को बताने वाला 'घटी' शब्द है जिसका टीकाकार ने इस प्रकार अर्थ किया है 'घटीमात्रकं'-घटीसंस्थानं मृन्मयभाजन विशेषं। घटिका (घडिगा) के आकार वाला एक प्रकार का मिट्टी का पात्र, घटीमात्रक का अर्थ है। जिस प्रकार तालप्रलम्ब के लम्बे टुकड़ों में पुरुष चिह्न का आभास होने के कारण साध्वी को उनका निषेध किया गया है, उसी प्रकार घटी आकार वाले मात्रक के मुख से स्त्री-चिह्न का आभास
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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