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________________ १३४] [ बृहत्कल्पसूत्र ५. चार मार्गों के समागम को (चौराहे को ) 'चतुष्क' कहते हैं। ६. जहां पर छह या अनेक रास्ते आकर मिलें, अथवा जहां से छह या अनेक ओर रास्ते जाते हों, ऐसे स्थान को 'चत्वर' कहते हैं । ७. अन्तरापण का अर्थ हाट-बाजार का मार्ग है। जिस उपाश्रय के एक ओर अथवा दोनों ओर बाजार का मार्ग हो, उसे 'अन्तरापण' कहते हैं । अथवा जिस घर के एक तरफ दुकान हो और दूसरी तरफ निवास हो उसे भी 'अन्तरापण' कहते हैं । ऐसे उपाश्रयों या घरों में साध्वियों को नहीं रहना चाहिये। क्योंकि इन स्थानों में अनेक मनुष्यों आवागमन रहता है। सहज ही उनकी दृष्टि साध्वियों पर पड़ती रहती है जिससे उनकी शीलरक्षा में कई बाधायें उत्पन्न होने की सम्भावना रहती है। अतः राजमार्ग या चौराहे आदि सूत्रोक्त स्थानों को छोड़कर गली के अन्दर या सुरक्षित स्थानों में साध्वियों का रहना निरापद होता है। साधु को ऐसे स्थानों में रहने में आपत्ति न होने से सूत्र में विधान किया गया है। स्वाध्याय ध्यान आदि संयम योगों में रुकावट आती हो तो साधु को भी ऐसे स्थानों में नहीं ठहरना चाहिये। बिना द्वार वाले स्थान में साधु-साध्वी के रहने का विधि-निषेध १४. नो कप्पड़ निग्गंथीणं अवंगुयदुवारिए उवस्सए वत्थए । एगं पत्थारं अन्तो किच्चा, एगं पत्थारं बाहिं किच्चा, ओहाडिय चिलिमिलियागंसि एवं णं कप्पइ वत्थए । १५. कप्पइ निग्गंथाणं अवंगुयदुवारिए उवस्सए वत्थए । १४. निर्ग्रन्थियों को अपावृत (खुले) द्वार वाले उपाश्रय में रहना नहीं कल्पता है। किन्तु निर्ग्रन्थियों को अपावृतद्वार वाले उपाश्रय में द्वार पर एक प्रस्तार (पर्दा) भीतर करके और एक प्रस्तार बाहर करके इस प्रकार चिलिमिलिका (जिसके बीच में मार्ग रहे) बांधकर उसमें रहना कल्पता है। १५. निर्ग्रन्थों को अपावृत्त द्वार वाले उपाश्रय में रहना कल्पता है । विवेचन — जिस उपाश्रय या गृह आदि का द्वार कपाट-युक्त न हो, ऐसे स्थान पर साध्वियों को ठहरने का जो निषेध किया है, उसका कारण यह है कि खुला द्वार देखकर रात्रि के समय चोर आदि आकर साध्वियों के वस्त्र - पात्रादि को ले जा सकते हैं। कामी पुरुष भी आ सकते हैं, वे अनेक प्रकार से साध्वियों को परेशान कर सकते हैं एवं उनके साथ बलात्कार भी कर सकते हैं। कुत्ते आदि भी घुस सकते हैं, इत्यादि कारणों से कपाट-रहित द्वार वाले उपाश्रय या घर में साध्वियों को ठहरने का निषेध किया गया है । किन्तु यदि अन्वेषण करने पर भी किसी ग्रामादि में किवाड़ों वाला घर ठहरने को नहीं मिले और खुले द्वार वाले घर में ठहरने का अवसर आवे तो उसके लिए प्रस्तुत सूत्र में बताया गया है कि अन्दर बाहर इस तरह वस्त्र का पर्दा कर दें कि सहज किसी की दृष्टि न पड़े और जाने-आने का मार्ग भी रहे।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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