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प्रथम उद्देशक]
[१२९ होता है। अतः उसे जब शस्त्र से विदारित कर, गुठली आदि को दूरकर या जिसमें अनेक बीज हैं उसे अग्नि आदि में पकाकर उबालकर या भूनकर सर्वथा असंदिग्ध रूप से अचित्त-निर्जीव कर लिया गया हो, तब वह भावपक्व-शस्त्र-परिणत कहा जाता है एवं ग्राह्य होता है।
___ इससे विपरीत–अर्थात् छेदन-भेदन किये जाने पर या अग्नि आदि में पकाने पर भी अर्द्धपक्व होने की दशा में उसके सचित्त रहने की सम्भावना हो तो वह भाव से अपक्व-शस्त्र-अपरिणत कहा जाता है एवं अग्राह्य होता है। विस्तृत विवेचन एवं चौभंगियों के लिये भाष्य एवं वृत्ति का अवलोकन करना चाहिए। ग्रामादि में साधु-साध्वी के रहने की कल्पमर्यादा
६. से १. गामंसि वा, २. नगरंसि वा, ३. खेडंसि वा, ४. कब्बडंसि वा, ५. मडंबंसिवा, ६. पट्टणंसि वा, ७. आगरंसि वा, ८. दोषमुहंसि वा, ९. निगमंसि वा, १०. आसमंसि वा, ११. सन्निवेसंसि वा, १२. संवाहंसि वा, १३. घोसंसि वा, १४. अंसियंसि वा, १५. पुडभेयणंसि वा, १६. रायहाणिंसि वा, सपरिक्खेवंसि अबाहिरियंसि, कप्पइ निग्गंथाणं हेमन्त-गिम्हासु एगं मासं वत्थए।
____७. से गामंसि वा जाव रायहाणिंसि वा, सपरिक्खेवंसि सबाहिरियंसि, कप्पइ निग्गंथाणं हेमन्त-गिम्हासु दो मासे वत्थए। अन्तो एगं मासं, बाहिं एगं मासं । अन्तो वसमाणाणं अन्तो भिक्खायरिया, बाहिं वसमाणाणं बाहिं भिक्खायरिया।
८.से गामंसि वा जाव रायहाणिंसि वा, सपरिक्खेवंसि अबाहिरियंसि, कप्पइ निग्गंथीणं हेमन्त-गिम्हासु दो मासे वत्थए।
९.से गामंसि वा जाव रायहाणिंसि वा सपरिक्खेवंसि सबाहिरियंसि, कप्पइ निग्गंथीणं हेमन्त-गिम्हासु चत्तारि मासे वत्थए। अन्तो दो मासे, बाहिं दो मासे। अन्त वसमाणीणं अन्तो भिक्खायरिया, बाहिं वसमाणीणं बाहिं भिक्खायरिया।
६. निर्ग्रन्थों को सपरिक्षेप और अबाहिरिक १. ग्राम, २. नगर, ३. खेट, ४. कर्बट, ५. मडंब, ६. पत्तन, ७. आकर, ८. द्रोणमुख, ९. निगम, १०. आश्रम, ११. सनिवेश, १२. सम्बाध, १३. घोष, १४. अंशिका, १५. पुटभेदन और १६. राजधानी में हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में एक मास तक रहना कल्पता है।
७. निर्ग्रन्थों को सपरिक्षेप (प्राकार या वाड-युक्त) और सबाहिरिक (प्राकार के बाहर की बस्ती युक्त) ग्राम यावत् राजधानी में हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में दो मास तक रहना कल्पता है। एक मास ग्राम आदि के अन्दर और एक मास ग्रामादि के बाहर। ग्राम आदि के अन्दर रहते हुए अन्दर ही भिक्षाचर्या करना कल्पता है। ग्राम आदि के बाहर रहते हुए बाहर ही भिक्षाचर्या करना कल्पता है।
८. निर्ग्रन्थियों को सपरिक्षेप और अबाहिरिक ग्राम यावत् राजधानी में हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में दो मास तक रहना कल्पता है।