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________________ १२४] [दशाश्रुतस्कन्ध ११-१२. अपने को ब्रह्मचारी या बालब्रह्मचारी न होते हुए भी प्रसिद्ध करना, १३-१४. उपकारी पर अपकार करना, १५. रक्षक होकर भक्षक का कार्य करना, १६-१७. अनेकों के रक्षक नेता या स्वामी आदि को मारना, १८. दीक्षार्थी या दीक्षित को संयम से च्युत करना, १९. तीर्थंकरों की निन्दा करना, २०. मोक्षमार्ग की द्वेषपूर्वक निन्दा करके भव्य जीवों को मार्ग-भ्रष्ट करना, २१-२२. उपकारी आचार्य, उपाध्याय की अवहेलना करना, उनका आदर, सेवा, भक्ति न करना। २३-२४. बहुश्रुत या तपस्वी न होते हुए भी बहुश्रुत या तपस्वी कहना, २५. कलुषित भावों के कारण समर्थ होते हुए भी सेवा नहीं करना, २६. संघ में भेद उत्पन्न करना, २७. जादू-टोना आदि करना, २८. कामभोगों में अत्यधिक आसक्ति एवं अभिलाषा रखना, २९. देवों की शक्ति का अपलाप करना, उनकी निन्दा करना, ३०. देवी देवता के नाम से झूठा ढोंग करना। अध्यवसायों की तीव्रता या क्रूरता के होने से इन प्रवृत्तियों द्वारा महामोहनीय कर्म का बन्ध होता है। दसवीं दशा का सारांश __संयम तप की साधना रूप सम्पत्ति को भौतिक लालसाओं की उत्कटता के कारण आगे के भव में ऐच्छिक सुख या अवस्था प्राप्त करने के लिए दाव पर लगा देना 'निदान' (नियाण करना) कहा जाता है। ऐसा करने से यदि संयम तप की पूँजी अधिक हो तो निदान करना फलीभूत हो जाता है किन्तु उसका परिणाम हानिकर होता है अर्थात् राग-द्वेषात्मक निदानों के कारण निदान फल के साथ मिथ्यात्व एवं नरकादि दुर्गति की प्राप्ति होती है और धर्मभाव के निदानों से मोक्षप्राप्ति में दूरी पड़ती है। अतः निदान कर्म त्याज्य है। नव निदान १. निर्ग्रन्थ द्वारा पुरुष के भोगों का निदान। २. निर्ग्रन्थी द्वारा स्त्री के भोगों का निदान। ३. निर्ग्रन्थ द्वारा स्त्री के भोगों का निदान । ४. निर्ग्रन्थी द्वारा पुरुष के भोगों का निदान। ५-६-७. संकल्पानुसार दैविक सुख का निदान। ८. श्रावक अवस्था प्राप्ति का निदान। ९. साधु जीवन प्राप्ति का निदान। इन निदानों का दुष्फल जानकर निदान रहित संयम तप की आराधना करनी चाहिए। ॥दशाश्रुतस्कन्ध का सारांश समाप्त ॥ * * *
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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