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________________ सारांश] [१२३ १०-११. पांव से कांटा या आंख में से रज आदि नहीं निकालना। १२. सूर्यास्त के बाद एक कदम भी नहीं चलना। रात्रि में मल-मूत्र की बाधा होने पर जा-आ सकता है। १३. हाथ पांव के सचित्त रज लग जाए तो प्रमार्जन नहीं करना और स्वतः अचित्त न हो जाए तब तक गोचरी आदि भी नहीं जाना। १४. अचित्त जल से भी सुखशान्ति के लिए हाथ पांव नहीं धोना। १५. उन्मत्त पशु भी चलते समय सामने आ जाए तो मार्ग नहीं छोड़ना। १६. धूप से छाया में और छाया से धूप में नहीं जाना। ये नियम सभी प्रतिमाओं में यथायोग्य समझ लेना। प्रथम सात प्रतिमाएँ एक-एक महीने की हैं। उनमें दत्ति की संख्या १ से ७ तक वृद्धि होती है। आठवीं नवमी दसवीं प्रतिमाएँ सात-सात दिन की एकान्तर तप युक्त की जाती हैं। सूत्रोक्त तीन-तीन आसन में से रात्रि भर कोई भी एक आसन किया जाता है। ग्यारहवीं प्रतिमा में छ? के तप के साथ एक अहोरात्र का कायोत्सर्ग किया जाता है। बारहवीं भिक्षुप्रतिमा में अट्ठमतप के साथ श्मशान आदि में एक रात्रि का कायोत्सर्ग किया जाता है। आठवीं दशा ___ इस दशा का नाम पyषणाकल्प है। विक्रम की तेरहवीं चौदहवीं शताब्दि में अर्थात् वीर निर्वाण की अठारहवीं उन्नीसवीं शताब्दी में इस दशा के अवलम्बन से कल्पसूत्र की रचना करके उसे प्रामाणिक प्रसिद्ध करके प्रचारित किया गया है। अन्य किसी विस्तृत सूत्र के पाठों के साथ इस दशा को जोड़कर और स्वच्छंदतापूर्वक अनगिनत परिवर्तन करके इस दशा को पूर्ण विकृत करके व्यवछिन्न कर दिया गया है। अतः यह दशा अनुपलब्ध व्यवछिन्न समझनी चाहिए। इसमें भिक्षुओं के चातुर्मास एवं प!षणा सम्बन्धी समाचारी के विषयों का कथन था। नवमी दशा का सारांश आठ कर्मों में मोहनीयकर्म प्रबल है, महामोहनीय कर्म उससे भी तीव्र होता है। उसके बंध सम्बन्धी ३० कारण यहां कहे गए हैं। तीस महामोह के स्थान १-३. त्रस जीवों को जल में डुबाकर, श्वास रूंधकर, धुंआ करके, मारना, ४-५. शस्त्रप्रहार से शिर फोड़कर, सिर पर गीला चमड़ा बांधकर मारना, ६. धोखा देकर भाला आदि से मार कर हंसना, ७. मायाचार करके उसे छिपाना या शास्त्रार्थ छिपाना, ८. मिथ्या आक्षेप लगाना, ९. भरी सभा में मिश्र भाषा का प्रयोग करके कलह करना, १०. विश्वस्त मंत्री द्वारा राजा को राज्यभ्रष्ट कर देना,
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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