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________________ सारांश] [१२१ गण एवं आचार्य के प्रति शिष्यों का कर्तव्य १. आवश्यक उपकरणों की प्राप्ति, सुरक्षा एवं विभाजन में चतुर होना। २. आचार्य गुरुजनों के अनुकूल ही सदा प्रवर्तन करना। ३. गण के यश की वृद्धि, अपयश का निवारण एवं रत्नाधिक को यथायोग्य आदरभाव देना और सेवा करने में सिद्धहस्त होना। ४. शिष्यवृद्धि, उनके संरक्षण, शिक्षण में सहयोगी होना। रोगी साधुओं की यथायोग्य सारसम्भाल करना एवं मध्यस्थ भाव में साधुओं की शान्ति बनाए रखने में निपुण होना। पांचवीं दशा का सारांश : चित्तसमाधि के दस बोल सांसारिक आत्मा को धन-वैभव भौतिक सामग्री की प्राप्ति होने पर आनन्द का अनुभव होता है, उसी प्रकार आत्मगुणों की अनुपम उपलब्धि में आत्मार्थी मुमुक्षुओं को अनुपम आनन्दरूप चित्त समाधि की प्राप्ति होती है १. अनुपम धर्मभावों की प्राप्ति या वृद्धि होने पर, २. जातिस्मरणज्ञान होने पर, ३. अत्यन्त शुभ स्वप्न देखने पर, ४. देवदर्शन होने पर, ५. अवधिज्ञान, ६. अवधिदर्शन, ७. मनःपर्यवज्ञान, ८. केवलज्ञान, ९. केवलदर्शन उत्पन्न होने पर, १०. कर्मों से मुक्त हो जाने पर। छट्ठी दशा का सारांश : श्रावकप्रतिमा श्रावक का प्रथम मनोरथ आरम्भ परिग्रह की निवृत्तिमय साधना करने का है। उस निवृत्तिसाधना के समय वह विशिष्ट साधना के लिए श्रावक की प्रतिमाओं को अर्थात् विशिष्ट प्रतिज्ञाओं को धारण कर सकता है। अनिवृत्त साधना के समय भी श्रावक समकित की प्रतिज्ञा सहित सामायिक पौषध आदि बारह व्रतों का आराधन करता है किन्तु उस समय वह अनेक परिस्थितियों एवं जिम्मेदारियों के कारण अनेकों आगार के साथ उन व्रतों को धारण करता है किन्तु निवृत्तिमय अवस्था में आगारों से रहित उपासक प्रतिमाओं का पालन दृढ़ता के साथ कर सकता है। ११. प्रतिमाएं १. आगाररहित निरतिचार सम्यक्त्व की प्रतिमा का पालन । इसमें पूर्व के धारण किए अनेक नियम एवं बारह व्रतों का पूर्व प्रतिज्ञा एवं आगार अनुसार पालन किया जाता है, उन नियमों को छोड़ा नहीं जाता। २. अनेक छोटे बड़े नियम प्रत्याख्यान अतिचाररहित और आगाररहित पालन करने की प्रतिज्ञा करना और यथावत पालन करना। ३. प्रातः, मध्याह्न, सायं नियत समय पर ही निरतिचार शुद्ध सामायिक करना एवं १४ नियम भी नियमित पूर्ण शुद्ध रूप से आगाररहित धारण करके यथावत पालन करना।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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