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________________ १२०] [दशाश्रुतस्कन्ध प्रस्तुत दशा में आचार्य के आठ मुख्य गुण कहे हैं, यथा१. आचारसम्पन्न - सम्पूर्ण संयम सम्बन्धी जिनाज्ञा का पालन करने वाला, क्रोध मानादि कषायों से रहित, शान्त स्वभाव वाला। २. श्रुतसम्पन्न - आगमोक्त क्रम से शास्त्रों को कंठस्थ करने वाला एवं उनके अर्थ परमार्थ को धारण करने वाला। ३. शरीरसम्पन्न - समुचित संहनन संस्थान वाला एवं सशक्त और स्वस्थ शरीर वाला। ४. वचनसम्पन्न - आदेय वचन वाला, मधुर वचन वाला, राग-द्वेष रहित एवं भाषा सम्बन्धी दोषों से रहित वचन बोलने वाला। ५. वाचनासम्पन्न- सूत्रों के पाठों का उच्चारण करने कराने में, अर्थ परमार्थ को समझाने में तथा शिष्य की क्षमता योग्यता का निर्णय करके शास्त्र ज्ञान देने में निपुण। योग्य शिष्यों को राग द्वेष या कषाय रहित होकर अध्ययन कराने के स्वभाव वाला। ६. मतिसम्पन्न- स्मरणशक्ति एवं चारों प्रकार की बुद्धि से युक्त बुद्धिमान हो अर्थात् भोला भद्रिक न हो। ७. प्रयोगमतिसम्पन्न- वाद-विवाद (शास्त्रार्थ) में, प्रश्नों (जिज्ञासाओं) के समाधान करने में परिषद् का विचार कर योग्य विषय का विश्लेषण करने में एवं सेवा-व्यवस्था में समय पर उचित बुद्धि की स्फुरणा हो, समय पर सही (लाभदायक) निर्णय एवं प्रवर्तन कर सके। ८. संग्रहपरिज्ञासम्पदा- साधु साध्वी की व्यवस्था एवं सेवा के द्वारा एवं श्रावक-श्राविकाओं की विचरण तथा धर्म प्रभावना के द्वारा भक्ति निष्ठा ज्ञान विवेक की वृद्धि करने वाला। जिससे कि संयम के अनुकूल विचरण क्षेत्र, आवश्यक उपधि, आहार की प्रचुर उपलब्धि होती रहे एवं सभी . निराबाध संयम आराधना करते रहें। शिष्यों के प्रति आचार्य के कर्तव्य १. संयम सम्बन्धी और त्याग-तप सम्बन्धी समाचारी का ज्ञान कराना एवं उसके पालन में अभ्यस्त करना। समूह में रहने की या अकेले रहने की विधियों एवं आत्मसमाधि के तरीकों का ज्ञान एवं अभ्यास कराना। २. आगमों का क्रम से अध्ययन करवाना, अर्थ ज्ञान करवाकर उससे किस तरह हिताहित होता है, यह समझाना एवं उसे पूर्ण आत्मकल्याण साधने का बोध देते हुए परिपूर्ण वाचना देना। ३. शिष्यों की श्रद्धा को पूर्ण रूप से दृढ़ बनाना और ज्ञान में एवं अन्य गुणों में अपने समान बनाने का प्रयत्न करना। ४. शिष्यों में उत्पन्न दोष, कषाय, कलह, आकांक्षाओं का उचित उपायों द्वारा शमन करना। ऐसा करते हुए भी अपने संयम गुणों की एवं आत्मसमाधि की पूर्णरूपेण सुरक्षा एवं वृद्धि करना।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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