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[दशाश्रुतस्कन्ध हे आयुष्मन् श्रमणो! उस निदानशल्य का यही पापकारी परिणाम है कि वह केवलिप्रज्ञप्त धर्म का श्रवण भी नहीं कर सकता है। २. निर्ग्रन्थी का मनुष्यसम्बन्धी भोगों के लिये निदान करना
एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पण्णत्ते, इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे जाव' सव्वदुक्खाणं अंतं करेंति।
जस्स णं धम्मस्स निग्गंथी सिक्खाए उवट्ठिया विहरमाणी जाव पासेज्जा से जा इमा इत्थिया भवइ-एगा, एगजाया, एगाभरणपिहाणा, तेल्ल-पेला इव सुसंगोपिता, चेल-पेला इव सुसंपरिगहिया, रयणकरंडकसमाणी।
तीसे णं अतिजायमाणीए वा, निज्जायमाणीए वा, पुरओ महं दासी-दास-किंकरकम्मकर-पुरिसा छत्तं भिंगारं गहाय निग्गच्छंति जाव तस्स णं एगमवि आणवेमाणस्स जाव' चत्तारिपंच अवुत्ता चेव अब्भुटेंति, भण देवाणुप्पिया! किं करेमो जाव' किं ते आसगस्स सदति ?'
जं पासित्ता निग्गंथी णिदाणं करेति
'जइ इमस्स सुचरियतवनियमबंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अत्थि, तं अहमवि आगमिस्साए इमाई एयारूवाई उरालाई माणुस्सगाई कामभोगाई भुंजमाणी विहरामिसे तं साहु।'
एवं खलुसमणाउसो! निग्गंथी णिदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइय अप्पडिक्कंता कालेमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारा भवइ जाव' दिव्वाइं भोगाई भुंजमाणी विहरति जाव साणंताओ देवलोगाओ आउक्खएणं, भवक्खएणं, ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता जे इमे भवंति उग्गपुत्ता महामाउया भोगपुत्ता महामाउया एतेसिंणं अण्णयरंसि कुलंसि दारियत्ताए पच्चायाति।
सा णं तत्थ दारिया भवइ सुकुमाला जाव सुरूवा।
तए णं तं दारियं अम्मापियरो उम्मुक्कबालभावं, विण्णाणपरिणयमित्तं, जोव्वणगमणुप्पत्तं, पडिरूवेणं सुक्केणं पडिरूवस्स भत्तारस्स भरियत्ताए दलयंति।।
साणं तस्स भारिया भवइ एगा, एगजाया, इट्ठा, कंता, पिया, मणुण्णा, मणामा, धेज्जा, वेसासिया, सम्मया, बहुमया, अणुमया रयणकरंडगसमाणा।
तीसे णं अतिजायमाणीए वा, निन्जायमाणीए वा पुरतो महं दासी-दास-किंकर-कम्मकर पुरिसा छत्तं, भिंगारं गहाय निग्गच्छंति जाव' तस्स णं एगमवि आणवेमाणस्स जाव चत्तारि पंच अवुत्ता चेव अब्भुटेंति-'भण देवाणुप्पिया! किं करेमो जाव किं ते आसगस्स सदति ?'
१. सूय. श्रु. २, अ. २, सूत्र ५८-६१ (अंगसुत्ताणि) २-१०. प्रथम निदान में देखें।