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________________ ८४] [दशाश्रुतस्कन्ध महावीर यावत् सर्वज्ञ सर्वदर्शी हैं। वे अनुक्रमशः सुखपूर्वक गांव-गांव घूमते हुए यहां पधारे हैं, यहां विद्यमान हैं, यहां ठहरे हैं, यहां राजगृह नगर के बाहर गुणशील बगीचे में यथायोग्य अवग्रह ग्रहण कर संयम, तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विराजमान हैं। 'हे देवानुप्रियो ! चलें, श्रेणिक राजा को यह संवाद सुनाएँ और उन्हें कहें कि आपके लिए यह संवाद प्रिय हो', इस प्रकार एक दूसरे ने ये वचन सुने। वहां से वे राजगृह नगर में आए। नगर के बीच में होते हुए जहां श्रेणिक राजा का राजप्रासाद था और जहां श्रेणिक राजा था वहां वे आये। श्रेणिक राजा को हाथ जोड़कर सिर के आवर्तन करके अंजलि को मस्तक से लगाकर जय-विजय बोलते हुए बधाया और इस प्रकार कहा 'हे स्वामिन् ! जिनके दर्शनों की आप इच्छा करते हैं यावत् वे श्रमण भगवान् महावीर स्वामी गुणशील बगीचे में यावत् विराजित हैं-इसलिए हे देवानुप्रिय! यह प्रिय संवाद आपसे निवेदन कर रहे हैं। यह संवाद आपके लिये प्रिय हो।' श्रेणिक का दर्शनार्थ गमन तए णं से सेणिए राया तेसिं पुरिसाणं अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म जाव विसप्पमाणहियए सीहासणाओ अब्भुढेइ, अब्भुट्टित्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता ते पुरिसे सक्कारेइ सम्माणेइ, सक्कारित्ता सम्माणित्ता विउलं जीवियारिहं पीइदाणंदलयइ, दलइत्ता पडिविसजेति, पडिविसज्जित्ता नगरगुत्तियं सदावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी ___ 'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! रायगिहनगरं सब्भिंतर-बाहिरियं आसिय-संमजियोवलित्तं' जाव कारवित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहिं जाव पच्चप्पिणंति।तए णं से सेणिए राया बलवाउयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी 'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! हय-गय-रह-जोहकलियं चाउरंगिणिं सेणं सण्णाहेह।' जाव से वि पच्चप्पिणइ। तए णं से सेणिए राया जाण-सालियं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी___ 'भो देवाणुप्पिया! खिप्यामेव धम्मियं जाणपवरं जुत्तामेव उवट्ठवेह, उवट्ठवित्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि।' तए णं से जाणसालिए सेणियरन्ना एवं वुत्ते समाणे हद्वतुट्ठ, जाव विसप्पमाणहियए जेणेव जाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाणसालं अणुप्पविसइ; अणुप्पविसित्ता जाणगं १. यहां से इस वर्णन में श्रेणिक राजा सेनापति, यानशालिक, नगररक्षक आदि को अलग-अलग बुलवाकर आदेश देता है किन्तु औपपातिकसूत्र के भगवान् महावीर के दर्शन की तैयारी के वर्णन में कोणिक राजा केवल सेनापति को बुलवाकर आदेश देता है, वही सम्पूर्ण तैयारी करवाता है। यह दोनो सूत्रों के वर्णक संकलन में अन्तर है। २. उवावाईसूत्र सु. ४०
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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