SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 163
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८२] [दशाश्रुतस्कन्ध महत्तरगा आणत्ता चिठंति, ते एवं वयंति जाव'सेणियस्सरन्नो एयमट्ठं पियं निवेदेजा, पियं भे भवतु' दोच्चंपि तच्चंपि एवं वदंति, वइत्ता जामेव दिसं पाउब्भूया तामेव दिसं पडिगया। तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थयरे जाव गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।। तए णं रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु महया जणसद्दे जाव' विणएणं पंजलिउडा पज्जुवासइ। तए णं महत्तरगा जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता नाम-गोयं पुच्छंति, नाम-गोयं पुच्छित्ता नाम-गोयं पधारेंति, पधारित्ता एगओ मिलंति एगओ मिलित्ता एगंतमवक्कमंति एगंतमवक्कमित्ता एवं वयासी 'जस्स णं देवाणुप्पिया! सेणिए राया भंभसारे दंसणं कंखति, जस्स णं देवाणुप्पिया! सेणिए राया दंसणं पीहेति, जस्स णं देवाणुप्पिया! सेणिए राया दंसणं पत्थेति, जस्स णं देवाणुप्पिया! सेणिए राया दंसणं अभिलसति, जस्सणं देवाणुप्पिया! सेणिए राया नामगोत्तस्सवि सवणयाए जाव विसप्पमाणहियए भवति।' से णं समणे भगवं महावीरे आदिगरे तित्थयरे जाव सव्वण्णू सव्वदंसी पुव्वाणुपुट्विं चरमाणे, गामाणुगामं दूइजमाणे सुहंसुहेणं विहरमाणे इह आगए, इह संपत्ते, इह समोसढे, इहेव रायगिहे नगरे बहिया गुणसिलए चेइए अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरति। तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया! सेणियस्स रण्णो एयमढं निवेदेमो-'पियं भे भवतु'त्ति कटु अण्णमन्नस्स वयणं पडिसुणंति, पडिसुणित्ता जेणेव रायगिहे नयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता रायगिह-नगरं मझमझेणं जेणेव सेणियस्स रन्नो गिहे, जेणेव सेणिए राया, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सेणियं रायंकरयलं परिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु जएणं विजएणं वद्धावेंति, वद्धावित्ता एवं वयासी ____ 'जस्स णं सामी! दंसणं कंखति, जाव से णं समणे भगवं महावीरे गुणसिलए चेइए जाव विहरति। एयण्णं देवाणुप्पियाणं पियं निवेदेमो। पियं भे भवतु।' । उस काल और उस समय में राजगृह नाम का नगर था। नगर का विस्तृत वर्णन (उववाईसूत्र से) जानना। उस नगर के बाहर गुणशील नाम का चैत्य (उद्यान) था। उद्यान का विस्तृत वर्णन (उववाईसूत्र से) जानना। उस राजगृह नगर में श्रेणिक नाम का राजा था। राजा का विस्तृत वर्णन (उववाईसूत्र से) जानना यावत् वह चेलणा महारानी के साथ परम सुखमय जीवन बिता रहा था। एक दिन श्रेणिक राजा ने स्नान किया यावत् कल्पवृक्ष के समान वह नरेन्द्र अलंकृत एवं विभूषित होकर १. उववाईसूत्र सु. ३८
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy