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________________ ७८] [दशाश्रुतस्कन्ध १५. सर्पिणी जिस प्रकार अपने ही अण्डों को खा जाती है, उसी प्रकार जो पालनकर्ता, सेनापति तथा कलाचार्य या धर्माचार्य को मार डालता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। १६. जो राष्ट्रनायक को, निगम के नेता को तथा लोकप्रिय श्रेष्ठी को मार डालता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। १७. जो अनेकजनों के नेता को तथा समुद्र में द्वीप के समान अनाथजनों के रक्षक का घात करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। १८. जो पापों से विरत दीक्षार्थी को और तपस्वी साधु को धर्म से भ्रष्ट करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। १९. जो अज्ञानी अनन्त ज्ञानदर्शनसम्पन्न जिनेन्द्र देव का अवर्णवाद-निन्दा करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। २०. जो दुष्टात्मा अनेक भव्य जीवों को न्याय मार्ग से भ्रष्ट करता है और न्यायमार्ग की द्वेषपूर्वक निन्दा करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। २१. जिन आचार्य या उपाध्यायों से श्रुत और आचार ग्रहण किया है, उनकी ही जो अवहेलना करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। २२. जो व्यक्ति आचार्य उपाध्याय की सम्यक् प्रकार से सेवा नहीं करता है तथा उनका आदर-सत्कार नहीं करता है और अभिमान करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। २३. जो बहुश्रुत नहीं होते हुए भी अपने आपको बहुश्रुत, स्वाध्यायी और शास्त्रों के रहस्य का ज्ञाता कहता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। २४. जो तपस्वी नहीं होते हुए भी अपने आपको तपस्वी कहता है, वह इस विश्व में सबसे बड़ा चोर है, अतः वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। २५. जो समर्थ होते हुए भी रोगी की सेवा का महान् कार्य नहीं करता है अपितु 'मेरी इसने सेवा नहीं की है अतः मैं भी उसकी सेवा क्यों करूँ' इस प्रकार कहता है, वह महामूर्ख मायावी एवं मिथ्यात्वी कलुषितचित्त होकर अपनी आत्मा का अहित करता है, ऐसा व्यक्ति महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। २६. चतुर्विध संघ में मतभेद पैदा करने के लिए जो कलह के अनेक प्रसंग उपस्थित करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। २७. जो श्लाघा या मित्रगण के लिए अधार्मिक योग करके वशीकरणादि का बार-बार प्रयोग करता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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