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________________ ७६] [दशाश्रुतस्कन्ध ३०. अपस्समाणो पस्सामि, देवे जक्खे य गुज्झगे। अण्णाणी जिणपूयट्ठी, महामोहं पकुव्वइ॥ एते मोहगुणा वुत्ता, कम्मंता चित्तवद्धणा। जे उ भिक्खू विवज्जेजा, चरेजत्तगवेसए॥ जंपिजाणे इतो पुव्वं, किच्चाकिच्चं बहुं जढं। तं वंता ताणि सेविजा, जेहिं, आयारवं सिया॥ आयार-गुत्ती सुद्धप्पा, धम्मे ठिच्चा अणुत्तरे। ततो वमे सए दोसे, विसमासीविसो जहा॥ सुचत्तदोसे सुद्धप्पा, धम्मट्ठी विदितायरे। इहेव लभते कित्तिं, पेच्चा य सुगतिं वरं ॥ एवं अभिसमागम्म, सूरा दढपरक्कमा। सव्वमोहविणिमुक्का, जाइमरणमतिच्छिया॥ उस काल और उस समय में चम्पा नामक नगरी थी। नगरी का विस्तृत वर्णन (उववाईसूत्र से) जानना चाहिए। पूर्णभद्र नाम का चैत्य (उद्यान) था। उद्यान का विस्तृत वर्णन (उववाईसूत्र से) जानना चाहिये। वहां कोणिक राजा राज्य करता था, उसके धारणी देवी पटरानी थी। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ग्रामानुग्राम विचरते हुए वहां पधारे। परिषद् चम्पा नगरी से निकलकर धर्मश्रवण के लिये पूर्णभद्र चैत्य में आई। भगवान् ने धर्म का स्वरूप कहा। धर्म श्रवण कर परिषद् चली गई। श्रमण भगवान् महावीर ने सभी निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थनियों को आमन्त्रित कर इस प्रकार कहा 'हे आर्यो! जो स्त्री या पुरुष इन तीस मोहनीय-स्थानों का सामान्य या विशेष रूप से पुनःपुनः आचरण करते हैं, वे महामोहनीय कर्म का बन्ध करते हैं। वे इस प्रकार हैं १. जो कोई त्रस प्राणियों को जल में डुबोकर या प्रचण्ड वेग वाली तीव्र जलधारा में डालकर मारता है, वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। २. जो प्राणियों के मुंह, नाक आदि श्वास लेने के द्वारों को हाथ आदि से अवरुद्ध कर अव्यक्त शब्द करते हुए प्राणियों को मारता है, वह महामोहनीय कर्म बांधता है। १. सम. ३०, सु. १
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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