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________________ ७०] [दशाश्रुतस्कन्ध पर्युषणाकल्पसूत्र में स्थविरावली के बाद समाचारी के प्रारम्भ का सूत्र भी मौलिक और शुद्ध नहीं है, उस सूत्र का भावार्थ देखने से यह अच्छी तरह समझ में आ सकता है। समाचारी-प्रकरण के प्रथम सूत्र में यह कहा गया है कि 'श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने वर्षावास के एक महीना बीस दिन बीतने पर वर्षावास किया। उसी प्रकार गणधरों ने किया, उसी प्रकार उनके शिष्यों ने एवं स्थविरों ने किया है और उसी प्रकार आजकल विचरने वाले श्रमण निर्ग्रन्थ करते हैं तथा हमारे आचार्य उपाध्याय भी उसी प्रकार वर्षावास करते हैं और हम भी वर्षावास का एक मास और बीस दिन बीतने पर (भादवासुदी पंचमी को) चातुर्मास करते हैं। उसके पहले भी अर्थात् चतुर्थी को करना कल्पता है किन्तु उसके बाद में करना नहीं कल्पता है।' .. ___ दशाश्रुतस्कन्ध से हटाये गये पर्युषणाकल्प अध्ययन की साधु-समाचारी वर्णन के पाठ का यह प्रथम सूत्र है। चौदहपूर्वी भद्रबाहु द्वारा निर्मूढ बृहत्कल्प और व्यवहारसूत्र भी हैं। इनके सूत्रों से मिलान करने पर समाचारी का यह सूत्र उनकी रचनाशैली के समकक्ष प्रतीत नहीं होता है, क्योंकि इस सूत्र के सम्बन्ध में अनेक प्रश्न उद्भूत होते हैं। यथा १. भगवान् ने कौनसा वर्षावास किस ग्राम या नगर में एक मास और बीस दिन बाद किया? क्योंकि भगवान् ने तो सभी चातुर्मास आषाढ़ी चौमासी के पूर्व ही स्थिर किये, ऐसे उल्लेख आगमों और ग्रन्थों में उपलब्ध हैं। वर्षावास के लिए ठहरने के स्थान की चार मास पर्यन्त आज्ञा लेकर ही संत-सतियों के रहने की परम्परा प्राचीनकाल से आज तक अविच्छिन्नरूप से प्रचलित है। इतिहास में एक भी उल्लेख ऐसा उपलब्ध नहीं है कि किसी भी अमुक साधु ने एक मास और बीस दिन बाद भादवा की शुक्ला पंचमी को चौमासा बिठाया हो। __ भगवान् के नाम से किसी प्रकार का विधान करना, यह भी छेदसूत्र की पद्धति नहीं है। नियुक्तिकार ने भी प्रथम सूत्र की व्याख्या २३ गाथाओं में की है, उनमें कहीं भगवान् महावीरस्वामी के वर्षावास के निर्णय का कथन नहीं है। २. भगवान् ने किया वैसा गणधरों ने किया, वैसा ही उनके शिष्यों ने एवं स्थविरों ने किया, वैसे ही आजकल के श्रमण तथा हमारे आचार्य और हम करते हैं। पहले दिन पर्युषण कर सकते हैं किन्तु बाद में नहीं कर सकते हैं।' ऐसी क्रमबद्ध रचना को चौदहपूर्वी भद्रबाहुस्वामी की रचना कहना भी असंगत है। ३. उक्त सूत्र में 'हम' शब्द का प्रयोग करने वाला कौन है ? भद्रबाहु जैसे महान् श्रुतधर इस प्रकार कहें, यह कल्पना करना भी उचित प्रतीत नहीं होता है। इस प्रकार पूर्वापर के तथ्यों पर चिन्तन करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि वर्तमान में उपलब्ध पर्युषणाकल्पसूत्र के समाचारी प्रकरण का यह प्रथम सूत्र और अन्य अनेक सूत्र परिवर्तित और परिवर्धित हैं, अत: यह समाचारी भी भद्रबाहु की रचना प्रतीत नहीं होती है। इस दशा का जो स्वरूप नियुक्तिकार के सामने था वह उपलब्ध कल्पसूत्र में दिखाई नहीं देता
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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