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________________ [ दशाश्रुतस्कन्ध दशाश्रुतस्कन्ध छेदसूत्र है। छेदसूत्रों का विषय और उनकी रचना-पद्धति कुछ भिन्न ही है। बृहत्कल्प, व्यवहार और निशीथसूत्र छेदसूत्र हैं। इनमें छोटे-छोटे उद्देशक हैं और केवल आचार का विषय है। दशाश्रुतस्कन्धसूत्र के नियुक्तिकार भी पांचवीं गाथा में इस सूत्र की छोटी दशाएँ होने का निर्देश करते हैं और बड़ी दशाएँ अन्य अंगसूत्रों में हैं, ऐसा कथन करते हैं। अतः वर्तमान में उपलब्ध कल्पसूत्र को समाविष्ट करने वाला संक्षिप्त पाठ प्राचीन प्रतीत नहीं होता है तथा नियुक्ति व्याख्या से भी ऐसा ही सिद्ध होता है। क्योंकि नियुक्तिकार ने इस अध्ययन में पर्युषणासूत्र की सर्वप्रथम व्याख्या की है। जबकि कल्पसूत्र में सर्वप्रथम नमस्कार मन्त्र तथा तीर्थंकर वर्णन है और पर्युषणा का सूत्र ९०० श्लोक प्रमाण वर्णन के बाद में है । ६८ ] कुछ चिन्तकों का यह मत है कि 'आठवीं दशा को अलग करके कल्पसूत्र नाम अंकित कर दिया गया है, अतः सम्पूर्ण कल्पसूत्र भद्रबाहुस्वामी रचित आठवीं दशा ही है।' यह भी एक कल्पना है। और इसे बिना सोचे-विचारे कईयों ने सत्य मान लिया है। नंदीसूत्र में तीन कल्पसूत्रों के नाम हैं - १. कप्पसुत्तं (बृहत्कल्पसूत्र ) २. चुल्लकप्पसुत्तं ३. महाकप्पसुत्तं। किन्तु इस पर्युषणाकल्पसूत्र का कहीं नाम नहीं है। नंदीसूत्र का संकलनका ल | वीरनिर्वाण की दसवीं शताब्दी का माना जाता है। तब तक इस कल्पसूत्र का स्वतन्त्र अस्तित्व ही नहीं था, यह स्पष्ट और सुनिश्चित है । आर्य भद्रबाहुस्वामी ने दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, कल्पसूत्र (बृहत्कल्पसूत्र ) और व्यवहारसूत्र इन तीन छेदसूत्रों की रचना की है, इनमें से एक सूत्र का नाम कल्पसूत्र है ही तो उन्हीं के दशाश्रुतस्कन्ध एक दशा को अलग करके नया कल्पसूत्र का संकलन करना किसी भी विद्वान् द्वारा कैसे आवश्यक या उचित माना जा सकता है ? दशाश्रुतस्कन्ध-निर्युक्तिकार ने प्रथम गाथा में भद्रबाहुस्वामी को १४ पूर्वी कहकर वंदन किया है और तीन छेदसूत्रों का कर्ता कहा है - वंदामि भद्दबाहुं, पाईणं चरिम सगलसुयणाणिं । सुत्तस्स कारगमिसिं, दसासुकप्पे य ववहारे ॥ निर्युक्ति गाथा ॥ १ ॥ चूर्णिकार ने भी इस गाथा की व्याख्या करते हुए कहा है कि नियुक्तिकार इस प्रथम गाथा में सूत्रकार को आदि मंगल के रूप में प्रणाम करते हैं। अतः यह सहज सिद्ध है कि चूर्णिकार के समय तक स्वोपज्ञ नियुक्ति कहने की भ्रान्त धारणा भी नहीं थी और इससे यह भी स्पष्ट होता है कि सूत्रकार भद्रबाहुस्वामी से नियुक्तिकार भिन्न हुए हैं। क्योंकि नियुक्तिकार स्वयं सूत्रकर्ता भद्रबाहु स्वामी को वंदन करते हैं। अतः स्वोपज्ञ नियुक्ति मानना भी सर्वथा असंगत है । दशाश्रुतस्कन्ध के नियुक्तिकार ने निर्युक्ति करते हुए आठवीं दशा की नियुक्ति भी की है। उसमें न इस संक्षिप्त पाठ की सूचना की है और न अलग संकलित किए गये कल्पसूत्र की कोई चर्चा की है। निर्युक्तिकार ने आठ आचार - प्रधान आगमों की नियुक्ति की है। यदि पर्युषणाकल्पसूत्र आठवीं दशा से अलग होता तो उसका निर्देश या उसकी व्याख्या अवश्य करते । अतः यह निश्चित है कि
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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