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________________ सातवीं दशा ] [ ५७ धूप एक मासिकी भिक्षुप्रतिमाधारी अनगार को - 'यहां शीत अधिक है' ऐसा सोचकर छाया से में तथा 'यहां गर्मी अधिक है' ऐसा सोचकर धूप से छाया में जाना नहीं कल्पता है । किन्तु जब जहां जैसा हो वहां उसे सहन करे । भिक्षुप्रतिमाओं का सम्यग् आराधन एवं खलु एसा मासिया भिक्खुपडिमा अहासुत्तं, अहाकप्पं, अहामग्गं, अहातच्छं, सम्मं काएणं फासित्ता, पालित्ता, सोहित्ता, तीरित्ता, किट्टइत्ता, आराहित्ता, आणाए अणुपालित्ता भवइ । इस प्रकार यह एक मासिकी भिक्षुप्रतिमा सूत्र, कल्प और मार्ग के अनुसार यथातथ्य सम्यक् प्रकार काया से स्पर्श कर, पालन कर, शोधन कर, पूर्ण कर, कीर्तन कर और आराधन कर जिनाज्ञा के अनुसार पालन की जाती है। द्विमासिकी भिक्षुप्रतिमा जाती है। जाती है। दो-मासि भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स जाव आणाए अणुपालित्ता भवइ । नवरं दो दत्तिओ भोयणस्स पडिगाहित्तए दो पाणस्स । द्विमासिकी भिक्षुप्रतिमाप्रतिपन्न अनगार के द्वारा यावत् वह प्रतिमा जिनाज्ञानुसार पालन की कल्पता है। त्रैमासिकी भिक्षुप्रतिमा विशेष यह है कि उसे प्रतिदिन दो दत्तियां आहार की और दो दत्तियां पानी की ग्रहण करना जाती है। ति-मासियं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स जाव आणाए अणुपालित्ता भवइ । वरं तओ दत्तिओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, तओ पाणस्स । तीन मास की भिक्षुप्रतिमाप्रतिपन्न अनगार के द्वारा यावत् वह प्रतिमा जिनाज्ञानुसार पालन की विशेष यह है कि उसे प्रतिदिन तीन दत्तियां भोजन की और तीन दत्तियां पानी की ग्रहण करना कल्पता है। चातुर्मासिकी भिक्षुप्रतिमा चउमासियं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स जाव आणाए अणुपालित्ता भवइ । णवरं चत्तारि दत्तिओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, चत्तारि पाणस्स । चार मास की भिक्षुप्रतिमाप्रतिपन्न अनगार के द्वारा यावत् वह प्रतिमा जिनाज्ञानुसार पालन की विशेष यह है कि उसे प्रतिदिन चार दत्तियां आहार की और चार दत्तियां पानी की ग्रहण करना कल्पता है।
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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