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________________ पांचवीं दशा] [३९ अनुपम आनन्द को ही प्रस्तुत दशा में चित्तसमाधि कहा गया है। सूत्र में दसों ही स्थान गद्यपाठ व गाथा रूप में कहे गये हैं। गद्यपाठ में उन दस चित्तसमाधिस्थानों का कथन है और गाथाओं में उन समाधिस्थानों की प्राप्ति किस प्रकार की साधना करने वाले भिक्षु को होती है, यह कहा है और उस समाधिस्थान का क्या परिणाम होता है, यह भी बताया गया है। दस चित्तसमाधिस्थान इस प्रकार हैं १. श्रमण निर्ग्रन्थ को धर्मजागरणा करते हुए अनुत्पन्न धर्मभावना का उत्पन्न होना अर्थात् अनुपम धर्मध्यान की प्राप्ति । २. जातिस्मरण ज्ञान की प्राप्ति । ३. जिन स्वप्नों को देखकर जागृत होने से उसी भव में या १-२ भव में जीव को मुक्ति प्राप्त होती है, ऐसे स्वप्न को देखना। भगवतीसूत्र श. १६ उ.६ से ऐसे स्वप्नों का वर्णन है। ४. देवदर्शन होना-अर्थात् श्रमण की सेवा में देव का उपस्थित होना। ५. अवधिज्ञान की प्राप्ति। ६. अवधिदर्शन की प्राप्ति । ७. मनःपर्यवज्ञान की प्राप्ति । ८. केवलज्ञान की प्राप्ति। ९. केवलदर्शन की प्राप्ति। १०. मुक्तिगमन मोक्ष की प्राप्ति। दस चित्तसमाधि (आत्म-आनन्द के) स्थानों का दस गाथाओं में वर्णन करने के बाद मोहनीय-कर्म के क्षय का महत्त्व चार उपमाओं के द्वारा बताया गया है-१. तालवृक्ष के शीर्षस्थान पर सूई से छेद करना, २. सेनापति का युद्ध में मारा जाना, ३. अग्नि को ईंधन का अभाव, ४. वृक्ष का मूल सूख जाना। सभी कर्म भवपरम्परा के बीज हैं। इन कर्म-बीजों के जल जाने अर्थात् पूर्ण क्षय हो जाने पर जीव शाश्वत मोक्ष को प्राप्त होता है। वह पुनः संसार में परिभ्रमण नहीं करता है। प्रस्तुत दशा में दस चित्तसमाधिस्थान श्रमण निर्ग्रन्थों को प्राप्त होने का प्रासंगिक कथन है, अतः अन्य श्रमणोपासक आदि को होने का निषेध नहीं समझना चाहिये। कई स्थान श्रमणोपासक को भी प्राप्त हो सकते हैं और कोई-कोई शुभ परिणामी अन्य संज्ञी जीवों को भी प्राप्त हो सकते हैं। चित्तसमाधि प्राप्त करने वाले श्रमण के विशेषणों में 'पक्खियपोसहिएसु समाहिपत्ताणं झियायमाणाणं' ऐसा पाठ है, इसका अर्थ पर्व तिथियों के दिन धर्मजागरण करने वाले श्रमणों की तपश्चर्या समझना चाहिए, क्योंकि शेष सावद्ययोगों का त्याग आदि तो भिक्षु के आजीवन होते ही हैं। ॥पांचवीं दशा समाप्त॥
SR No.003463
Book TitleTrini Chedsutrani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Ethics, agam_bruhatkalpa, agam_vyavahara, & agam_dashashrutaskandh
File Size11 MB
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