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चौथी दशा]
[२१ १. उग्गहमइसंपया, २. ईहामइसंपया, ३. अवायमइसंपया, ४. धारणामइसंपया। (१) प०-से किं तं उग्गहमइसंपया?
उ०-उग्गहमइसंपया छव्विहा पण्णत्ता, तं जहा१. खिप्पं उगिण्हेइ, २. बहुं उगिण्हेइ, ३. बहुविहं उगिण्हेइ, ४. धुवं उगिण्हेइ,
५. अणिस्सियं उगिण्हेइ, ६. असंसिद्धं उगिण्हेइ। से तं उग्गहमइसंपया। (२) एवं ईहामई वि। (३) एवं अवायमई वि। (४) प०-से किं तं धारणामइसंपया?
उ०-धारणामइसंपया छव्विहा पण्णत्ता, तं जहा१. बहुं धरेइ, २. बहुविहं धरेइ, ३. पोराणं धरेइ, ४. दुद्धरं धरेइ,
५. अणिस्सियं धरेइ, ६.असंदिद्धं धरेइ।से तं धारणामइसंपया।से तं मइसंपया। ७. प०-से किं तं पओगमइसंपया? उ०-पओगमइसंपया चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा
१. आयं विदाय वायं पउंजित्ता भवइ, २. परिसं विदाय वायं पउंजित्ता भवइ, ३. खेत्तं विदाय वायं पउंजित्ता भवइ, ४. वत्थु विदाय वायं पउंजित्ता भवइ।
से तं पओगमइसंपया। ८. प०-से किं तं संगहपरिण्णा णामं संपया ? उ०-संगहपरिण्णा णामं संपया चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा
१. बहुजणपाउग्गयाए वासावासेसु खेत्तं पडिलेहित्ता भवइ, २. बहुजणपाउग्गयाए पाडिहारिय-पीढ-फलग-सेज्जा-संथारयं उगिण्हित्ता भवइ, ३. कालेणं कालं समाणइत्ता भवइ, ४. अहागुरु संपूएत्ता भवइ।
से तं संगहपरिण्णासंपया।
हे आयुष्मन्! मैंने सुना है उन निर्वाणप्राप्त भगवान् महावीर ने ऐसा कहा है-इस आर्हतप्रवचन में स्थविर भगवन्तों ने आठ प्रकार की गणिसम्पदा कही है।
प्र०-हे भगवन्! वह आठ प्रकार की गणिसम्पदा कौन-सी कही गई हैं? उ०-आठ प्रकार की गणिसम्पदा ये कही गई हैं । जैसे
१. आचारसम्पदा, २. श्रुतसम्पदा, ३. शरीरसम्पदा, ४. वचनसम्पदा, ५. वाचनासम्पदा,
६. मतिसम्पदा, ७. प्रयोगमतिसम्पदा, ८. आठवीं संग्रहपरिज्ञासम्पदा। १. प्र०- भगवन्! वह आचारसम्पदा क्या है? उ०- आचारसम्पदा चार प्रकार की कही गई है। जैसे
१. संयमक्रियाओं में सदा उपयुक्त रहना। २. अहंकाररहित होना। ३. एक स्थान पर स्थिर होकर नहीं रहना। ४. वृद्धों के समान गम्भीर स्वभाव वाला होना।
यह चार प्रकार की आचारसम्पदा है।