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## Sutra Index
**Topic** | **Page Number**
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8-9. Penance for keeping an unsuitable vessel and for keeping a suitable vessel | 316-317
10-11. Penance for making a vessel beautiful or ugly | 317-319
12-19. Penance for performing vessel-related actions | 319-321
20-30. Penance for drying vessels in inappropriate places | 321-323
31-36. Penance for taking a vessel after removing animals, cobwebs, etc. | 323-325
37. Penance for drawing a picture (korani) on a vessel | 325
Penance for requesting a vessel on the road, etc. | 325
Penance for requesting a vessel from the assembly | 325
Penance for dwelling in a vessel | 325-326
40-41. Penance for desiring the belongings of a common monk | 326-327
5-12. Penance for eating or sucking a mango with awareness | 327-329
13-66. Penance for getting a householder to perform bodily actions | 329
**Uddeshak 15**
**Summary with Sutra Numbers:**
This section discusses the penance for various actions related to vessels, including:
* Keeping unsuitable vessels
* Making vessels beautiful or ugly
* Performing vessel-related actions
* Drying vessels in inappropriate places
* Taking vessels after removing animals, cobwebs, etc.
* Drawing pictures on vessels
* Requesting vessels on the road, etc.
* Requesting vessels from the assembly
* Dwelling in vessels
* Desiring the belongings of a common monk
* Eating or sucking a mango with awareness
* Getting a householder to perform bodily actions
The text also clarifies the meaning of certain terms, such as "bahudeesik" and "bahudevasik," and provides guidance on how to determine the appropriate penance based on the specific circumstances.
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सूत्रांक
विषय
पृष्ठांक
८-९ अयोग्य पात्र रखने का एवं योग्य पात्र परठने का प्रायश्चित्त .
सूत्राशय, परठने रखने में हेतु, प्रायश्चित्त विधान । १०-११ पात्र को सुन्दर या खराब करने का प्रायश्चित्त
३१६-३१७ उपयोग में आने योग्य पात्र होना चाहिए, सुन्दर खराब का लक्ष्य नहीं होना। १२-१९ पात्रपरिकर्म करने का प्रायश्चित्त
३१७-३१९ उपयोग में आने योग्य हो तो परिकर्म नहीं करना, बहुदेसिक और बहुदेवसिक' शब्द का
स्पष्टार्थ, परिस्थितिक छूट, कारण अकारण, सूत्र संख्या विचारणा एवं निर्णय । २०-३० अकल्पनीय स्थानों में पात्र सुखाने का प्रायश्चित्त
३१९-३२१ निषेध का कारण-जीव विराधना और गिरने फूटने का भय । ३१-३६ सप्राणी, जाले आदि निकाल कर पात्र लेने का प्रायश्चित्त
३२१-३२३ पात्र की गवेषणा में ध्यान रखने योग्य सूत्राशय की सूची, सूत्र संख्या व क्रम में भिन्नता,
अग्निकाय पात्र में कैसे ? दोष और विवेक । ३७ पात्र में कोरणी (चित्र) करने का प्रायश्चित्त
३२३ विभूषावृति, झूषिरदोष, प्रमादवृद्धि । मार्ग आदि में पात्र की याचना करने का प्रायश्चित्त
३२३ सूत्राशय, याचना करने में विवेकः, अविवेक करने में होने वाले दोष । परिषद् में से उठाकर पात्र की याचना करने का प्रायश्चित्त
३२४ पात्र के लिए निवास करने का प्रायश्चित्त
३२४-३२५ गृहस्थ को संकल्पबद्ध करना, दोषोत्पत्ति, विवेकज्ञान ।
उद्देशक का सूत्रक्रमांकयुक्त सारांश - किन-किन सूत्रों के विषय का वर्णन आगमों में है या नहीं है
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४०-४१
३२५
३२६
उद्देशक १५
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सामान्य साधु की आशातना करने का प्रायश्चित्त
३२७ स्वगच्छ या अन्यगच्छ के साधु-साध्वियों के साथ सद्व्यवहार, अन्य उपदेशकों से तुलना । ५-१२ सचित्त आम्र खाने-चूसने सम्बन्धी प्रायश्चित्त
३२७-३२९ एक फल से अनेक फलों का कथन, शब्दों की तुलना आचारांग से, व्याख्या में भी तुलना,
पुनः प्रयुक्त "अंब" के अनेक अर्थ, प्राचारांग का पाठ शुद्ध एवं विस्तृत । १३-६६ गहस्थ से शरीरपरिकर्म कराने का प्रायश्चित्त
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