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________________ द्वितीय अध्ययन ३५. 'जइ णं भंते ! समणेणं जाव संपत्तेण निरयावलियाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पन्नत्ते, दोच्चस्स णं भंते, अज्झयणस्स निरयावलियाणं समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं के अट्ठे पन्नत्ते ?' एवं खलु जम्बू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चम्पा नामं नयरी होत्था। पुण्णभहे चेइए। कूणिए राया। पउमावई देवी। तत्थ णं चम्पाए नयरीए सेणियस्स रनो भज्जा कूणियस्स रनो चुल्लमाउया सुकाली नामं देवी होत्था सुकुमाला। तीसे णं सुकालीए देवीए पुत्ते सुकाले नामं कुमारे होत्था सुकुमाले। तए णं से सुकाल कुमारे अन्नया कयाइ तिहिं दंतिसहस्सेहिं, जहा कालो कुमारो, निरवसेसं ते चेव भणियव्वं जाव महाविदेहे वासे ... अंतं काहिइ। ॥ बीयं अज्झयणं समत्तं ॥१२॥ ३५. जम्बू स्वामी ने अपने गुरु सुधर्मा स्वामी से पूछा - भदन्त! यदि श्रमण यावत् मुक्ति संप्राप्त भगवान् महावीर ने निरयावलिका के प्रथम अध्ययन का यह अर्थ प्रतिपादन किया है तो भगवन्! निरयावलिका के द्वितीय अध्ययन का श्रमण भगवान् यावत् निर्वाणसंप्राप्त महावीर ने क्या भाव प्रतिपादन किया है? - श्री सुधर्मा ने उत्तर दिया - आयुष्मन् जम्बू ! उस काल और उस समय में चम्पा नाम की नगरी थी। वहाँ पूर्णभद्र चैत्य था। कूणिक वहाँ का राजा था। पद्मावती उसकी पटरानी थी। उस चम्पानगरी में श्रेणिक राजा की भार्या, कूणिक राजा की सौतेली माता सुकाली नाम की रानी थी जो सुकुमाल शरीर आदि से सम्पन्न थी। उस सुकाली देवी का पुत्र सुकाल नामक राजकुमार था। वह सुकोमल अंग-प्रत्यंग वाला आदि विशेषणों से युक्त था। वह सुकाल कुमार किसी समय तीन हजार हाथियों इत्यादि सहित जैसा पूर्व में काल कुसार के विषय में कहा गया, वैसा समग्र वृत्तान्त कहना चाहिये अर्थात् वह भी रथमूसल संग्राम में मारा गया। मरकर चौथी नरकपृथ्वी में उत्पन्न हुआ है। वहाँ से निकलकर महाविदेह वर्ष में उत्पन्न होकर कर्मों का अंत करेगा। सम्पूर्ण कथन काल कुमार के समान ही कहना चाहिये। ॥ द्वितीय अध्ययन समाप्त ॥
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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