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[ निरयावलिकासूत्र
२५. तत्पश्चात् कूणिक राजा ने यह समाचार जानकर कि मुझे बिना बताये ही वेहल्ल कुमार सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार तथा अन्तःपुर परिवार सहित गृहस्थी के उपकरण-साधनों को लेकर यावत् आर्यक चेटक राजा के आश्रय में निवास कर रहा । तब उसने सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों के हार को लौटाने के लिये दूत भेजना उचित है, ऐसा विचार किया और विचार करके दूत को बुलाया। बुलाकर उससे कहा 'देवानुप्रिये ! तुम वैशाली नगरी जाओ। वहाँ तुम आर्यक चेटकराज को दोनों हाथ जोड़कर यावत् जय-विजय शब्दों से बधाकर इस प्रकार निवेदन 'स्वामिन्! कूणिक राजा विनति करते हैं कि वेहल्ल कुमार कूणिक राजा को बिना बताये ही सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों के हार को लेकर यहाँ आ गये हैं । इसलिये स्वामिन्! आप कूणिक राजा को अनुगृहीत करते हुये सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों का हार कूणिक राजा को वापिस लौटा दें। साथ ही वेहल्ल कुमार को भेंज दें।'
करना
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..कूणिक राजा की इस आज्ञा को दोनों हाथ जोड़कर यावत् स्वीकार करके दूत जहाँ अपना घर था, वहाँ आया । आकर चित्त सारथी के समान यावत् प्रातः कलेवा करता हुआ, अति दूर नहीं किन्तु पास-पास अन्तरावास-पड़ाव - विश्राम करते हुये जहाँ वैशाली नगरी थी वहाँ आया। आकर वैशाली नगरी के बीचों-बीच होकर जहाँ चेटक राजा का आवासगृह था और जहाँ उसकी बाह्य उपस्थान शाला (सभाभवन) थी, वहाँ पहुँचा । पहुँचकर घोड़ों को रोका, रथ को खड़ा किया और रथ से नीचे
उतरा ।
तदनन्तर बहुमूल्य एवं महान् पुरुषों के योग्य उपहार लेकर जहाँ आभ्यन्तर सभाभवन था, उसमें जहाँ चेटक राजा था, वहाँ पहुँचा । पहुंचकर दोनों हाथ जोड़कर यावत् 'जय-विजय' शब्दों से उसे बधाया और बधाकर इस प्रकार निवेदन किया 'स्वामिन्! कूणिक राजा प्रार्थना करते हैं वेहल्ल कुमार हाथी और हार लेकर कूणिक राजा की आज्ञा बिना यहाँ चले आये हैं इत्यादि, यावत् हार, हाथी और वेहल्ल कुमार को वापस भेजिये । ' चेटक राजा का उत्तर
२६. तए णं से चेडए राया तं दूयं वयासी 'जह चेव णं देवाणुप्पिया, कूणिए राया सेणियस्स रन्नो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए, मम नत्तुए। तहेव णं वेहल्ले वि कुमारे सेणियस्स नो पुत्ते चेल्लणाए देवीए अत्तए, मम नत्तुए। सेणिएणं रन्ना जीवंतेणं चेव वेहल्लस्स कुमारस्स सेयणगे गंधहत्थी अट्ठारसवंकं य हारे पुव्वविइण्णे । तं जइ णं कूणिए राया वेहल्लस्स रज्जस्स य अद्धं दलयइ तो णं अहं सेयणगं अट्ठारसवंकं हारं च कूणियस्स रन्नो पच्चप्पिणामि, वेहल्लं च कुमारं पेसेमि ।' तं दूयं सक्कारेइ संमाणेइ पडिविसज्जेइ ।
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तणं से दूए चेडएणं रन्ना पडिविसज्जिए समाणे जेणेव चाउग्घंटे आसरहे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, वेसालिं नयरिं मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता सुहिं वसहीहिं (जाव) वद्धावेत्ता एवं वयासी 'एवं खलु, सामी, चेडए राया
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