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________________ वर्ग १: प्रथम अध्ययन ] [२९ तब कूणिक राजा के बारम्बार सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों के हार को मांगने पर वेहल्ल कुमार के मन में विचार आया कि वह उनको झपटना चाहता है, लेना चाहता है, छीनना चाहता है। इसलिये जब तक कूणिक राजा मेरे सेचनक गंधहस्ती और अठारह लड़ों के हार को झपट न सके, ले न सके और छीन न सके, उससे पहले ही सेचनक गंधहस्ती और हार को लेकर अन्तःपुर परिवार और गृहस्थी की साधन-सामग्री के साथ चम्पानगरी से निकलकर - भाग कर वैशाली नगरी में आर्यक (नाना) चेटक का आश्रय लेकर रहूँ। उसने ऐसा विचार किया। विचार करके कूणिक राजा की असावधानी, मौका, अन्तरंग बातों-रहस्यों की जानकारी की प्रतीक्षा करते हुये समय यापन करने लगा। तत्पश्चात् किसी दिन वेहल्ल कुमार ने कूणिक राजा की अनुपस्थिति को जाना और सेचनक गंधहस्ती, अठारह लड़ों का हार तथा अन्तःपुर परिवार सहित गृहस्थी के उपकरण-साधनों को लेकर चम्पा नगरी से भाग निकला।.निकलकर जहाँ वैशाली नगरी थी वहां आया और अपने नाना चेटक का आश्रय लेकर वैशाली नगरी में निवास करने लगा। कूणिक राजा की प्रतिक्रिया । २५. तए णं से कूणिए राया इमीसे कहाए लद्धढे समाणे 'एवं खलु वेहल्ले कुमारे ममं असंविदिएणं सेयणगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं च हारं गहाय अन्तेउरपरियालसंपरिवुडे (जाव) अजगं चेडयं रायं उवसंपजित्ताणं विहरइ। तं सेयं खलु सेयणगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं च हारं आणलं दूयं पेसित्तए संपेहेइ, संपेहित्ता दूयं सद्दावेइ, सदावित्ता एवं वयासी – 'गच्छइ णं तुमं, देवाणुप्पिया वेसालिं नयरि। तत्थ णं तुमं ममं अजं चेडगं रायं करयल० वद्धावेत्ता एवं चयाही - "एवं खलु, सामी, कूणिए राया विनवेइ - एस णं वेहल्ले कुमारे कूणियस्स रनो असंविदिएणं सेयणगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं च हारं गहाय हव्वमागए। तए णं तुब्भे सामी, कूणियं रायं अणुगिण्हमाणा सेयणगं गंधहत्थिं अट्ठारसवंकं च हारं कूणियस्स रन्नो पच्चप्पिणह, वेहल्लं कुमारं च पेसेह।' तए णं से दूए कूणिएणं करयल० (जाव) पडिसुणित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्डित्ता जहा चित्तो (जाव) पायरोहिं नाइविकिठेहिं अन्तरावासेहिं वसमाणे वसमाणे जेणेव वेसाली नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वेसालीए नयरीए मझमझेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव चेडगस्स रन्नो गिहे जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुरए निगिण्हइ, निगिण्हत्ता रहं ठवेइ, ठवित्ता रहाओ पच्चोरुहइ। तं महत्थं जाव पाहुडं गिण्हइ, गिणिहत्ता जेणेव अब्भंतरिया उवट्ठाणसाला, जेणेव चेडए राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चेडगं रायं करयलपरिग्गहियं जाव कटु जएणं विजएणं वद्धावेइ, वद्धावेत्ता एवं वयासी – “एवं खलु, सामी, कूणिए राया विनवेइ – एस णं वेहल्ले कुमारे, तहेव भाणियव्वं (जाव) वेहल्लं कुमारं पेसेह।'
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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