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________________ वर्ग १ : प्रथम अध्ययन ] [ २५ ति कट्टु राईसरतलवर जाव माडम्बिय- कोडुम्बिय- इब्भ-सेट्ठि - सेणावइ - सत्थवाह - मन्तिगणगदोवारिय-अमच्च- चेड पीढमद्द-नगर-निगम- दूय-संधिवालसद्धिं संपरिवुडे रोयमाणे कंदमाणे सोयमाणे विलवमाणे महया इड्ढीसक्कारसमुदएणं सेणियस्स रन्नो नीहरणं करेइ । तणं से कूणिए कुमारे एएणं महया मणोमाणसिएणं दुक्खेणं अभिभूए समाणे अन्नया कयाइ अन्तेउरपरियाल - संपरिवुडे सभण्डमत्तोवगरणमायाए रायगिहाओ पडिनिक्खमइ, जेणेव चम्पानयरी तेणेव उवागच्छइ, तत्थ वि णं विउलभोगसमिइसमन्नागए कालेणं अप्पसोए जाए या होत्था । तणं से कूणिए राया अन्नया कयाइ कालाईए दस कुमारे सहावेइ, सद्दावेत्ता रज्जं च जाव रठ्ठे च बलं च वाहणं च कोसं च कोट्ठागारं च अंतेउरं च जणवयं च एक्कारसभाए विरिञ्चइ, विरिञ्चित्ता सयमेव रज्जसिरिं करेमाणे पालेमाणे विहरइ । २१. श्रेणिक राजा ने हाथ में कुल्हाड़ी लिये कूणिक कुमार को अपनी ओर आते हुए देखा । देख कर मन ही मन विचार किया यह मेरा बुरा विनाश चाहने वाला, यावत् कुलक्षण, अभागा कृष्णाचतुर्दशी को उत्पन्न, लोक-लाज से रहित, निर्लज्ज कूणिक कुमार हाथ में कुल्हाड़ी लेकर इधर आ रहा है। न मालुम मुझे यह किस कुमौत से मारे ! इस विचार से उसने भीत, त्रस्त भयग्रस्त, उद्विग्न और भयाक्रान्त होकर तालपुट विष को मुख में डाल लिया । तदनन्तर, तालपुट विष को मुख में डालने और मुहूर्तीन्तर के बाद कुछ क्षणों में उस विष के ( शरीर में ) व्याप्त होने पर श्रेणिक राजा निष्प्राण, निश्चेष्ट, निर्जीव हो गया । इसके बाद वह कूणिक कुमार जहां कारावास था, वहाँ पहुँचा । पहुँच कर उसने श्रेणिक राजा को निष्प्राण, निश्चेष्ट, लिर्जीव देखा। तब वह दुस्सह, दुर्द्धर्ष पितृशोक से विलविलाता हुआ कुल्हाड़ी से काटे हुए चम्पक वृक्ष की तरह धड़ाम से पछाड़ खा कर पृथ्वी पर गिर पड़ा। - - कुछ क्षणों के पश्चात् कूणिक कुमार आश्वस्त - सा हुआ और रोते हुए, आक्रंदन, शोक एवं विलाप करते हुए इस प्रकार कहने लगा अहो! मुझ अधन्य, पुण्यहीन, पापी, अभागे ने बुरा किया बहुत बुरा किया जो देवतास्वरूप, अत्यंत स्नेहानुराग-युक्त अपने पिता श्रेणिक राजा को कारागार में डाला। मेरे कारण ही श्रेणिक राजा कालगत हुए हैं। तदनन्तर ऐश्वर्यशाली पुरुषों, तलवर राज्यमान्य पुरुषों, मांडलिक, जागीरदारों, कौटुम्बिक - प्रमुख परिवारों के मुखिया, इभ्य कोट्यधीश, धनपति श्रीमंत, श्रेष्ठी समाज में प्रमुख माने जाने वाले, सेनापतियों, मंत्री, गणक – ज्योतिषी, द्वारपाल, अमात्य, चेट सेवक, पीठमर्दक अंगरक्षक, नागरिक, व्यवसायी, दूत, संधिपाल राष्ट्र के सीमांत प्रदेशों के रक्षक आदि विशिष्ट जनों से संपरिवृत होकर रुदन, आक्रन्दन, शोक और विलाप करते हुए महान् ऋद्धि, सत्कार एवं अभ्युदय के साथ श्रेणिक राजा का अग्निसंस्कार किया। - -- - - — तत्पश्चात् वह कूणिक कुमार इस महान् मनोगत मानसिक दुःख से अतीव दुःखी हो कर (इस दुःसह दुःख को विस्मृत करने के लिये ) किसी समय अन्तःपुर परिवार को लेकर, धन-संपत्ति आदि
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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