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[ निरयावलिकासूत्र
तब चेलना देवी ने कूणिक राजा से इस प्रकार कहा – हे पुत्र! मुझे तुष्टि, उत्साह, हर्ष अथवा आनन्द कैसे हो सकता है, जबकि तुमने देवतास्वरूप, गुरुजन जैसे, अत्यन्त स्नेहानुराग युक्त पिता श्रेणिक राजा को बन्धन में डालकर अपना निज का महान् राज्याभिषेक से अभिषेक कराया है।
तब कूणिक राजा ने चेलना देवी से इस प्रकार कहा - माताजी! श्रेणिक राजा तो मेरा घात करने के इच्छुक थे। हे अम्मा! श्रेणिक राजा तो मुझे मार डालना चाहते थे, बांधना चाहते थे और निर्वासित कर देना चाहते थे। तो फिर हे मातां! यह कैसे मान लिया जाए कि श्रेणिक राजा मेरे प्रति अतीव स्नेहानुराग वाले थे ?
यह सुन कर चेलना देवी ने कूणिक कुमार से इस प्रकार कहा – हे पुत्र! जब तुम्हें मेरे गर्भ में आने पर तीन मास पूरे हुए तो मुझे इस प्रकार का दोहद उत्पन्न हुआ कि - वे माताएं धन्य हैं, यावत् अंगपरिचारिकाओं से मैंने तुम्हें उकरड़े में फिकवा दिया, आदि आदि, यावत् जब भी तुम वेदना से पीड़ित होते और जोर जोर से रोते तब श्रेणिक राजा तुम्हारी अंगुली मुख में लेते और मवाद चूसते। तब तुम चुप-शांत हो जाते, इत्यादि सब वृतान्त चेलना ने कूणिक को सुनाया। फिर कहा - इसी कारण हे पुत्र! मैंने कहा कि श्रेणिक राजा तुम्हारे प्रति अत्यंत स्नेहानुराग से युक्त हैं।
कूणिक राजा ने चेलना रानी से इस पूर्व वृतान्त को सुन कर और ध्यान में ले कर चेलना देवी से इस प्रकार कहा - माता! मैंने बुरा किया जो देवतास्वरूप, गुरुजन जैसे अत्यन्त स्नेहानुराग से अनुरक्त अपने पिता श्रेणिक राजा को बेड़ियों से बांधा। अब मैं जाता हूँ और स्वयं ही श्रेणिक राजा की बेड़ियों को काटता हूँ, ऐसा कह कर कुल्हाड़ी हाथ में ले जहाँ कारागृह था, उस ओर चलने के लिये उद्यत हुआ, चल दिया। श्रेणिक का मनोविचार
२१. तए णं सेणिए राया कूणियं कुमारं परसुहत्थगयं एजमाणं पासइ, पासित्ता एवं वयासी – “एस णं कूणिए कुमारे अपत्थियपत्थिय (जाव) दुरंतपंतलक्खणे हीणपुण्णचाउद्दसिए हिरिसिरिपरिवज्जिए परसुहत्थगए इह हव्वमागच्छइ। तं न नज्जइ णं ममं केणइ कु-मारेणं मारिस्सइ' त्ति कटु भीए (जाव) तत्थे तसिए उब्बिग्गे संजायभये तालपुडगं विसं आसगंसि पक्खिवइ।
तए णं से सेणिए राया तालपुडगविसंसि आसगंसि पक्खित्ते समाणे मुहुत्तंतरेण परिणममाणंसि निप्पाणे निच्चेढे जीवविप्पजढे ओइण्णे।
___तए णं से कूणिए कुमारे जेणेव चारगसाला तेणेव उवागए, उवागच्छित्ता सेणियं रायं निप्पाणं निच्चेठं जीवविप्पजढं ओइण्णं पासइ, पासित्ता महया पिइसोएणं अप्फुण्णे समाणे परसुनियत्ते विव चम्पगवरपायये धस त्ति धरणीयलंसि सव२हिं संनिवडिए। तए णं से कूणिए कुमारे महत्तंतरेण आसत्थे समाणे रोयमाणे कंदमाणे सोयमाणे विलवमाणे एवं वयासी – 'अहो णं मए अधन्नेणं अपुण्णेणं अकयपुण्णेणं दुद्रुकयं सेणियं रायं पियं देवयं अच्चंतनेहाणुरागरत्तं नियलबंधणं करतेणं। मममूलागं चेव णं सेणिए राया कालगए'