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________________ वर्ग १ : प्रथम अध्ययन ] [२१ बालक को हथेलियों में लिया। लेकर वह अशोक-वाटिका में गई और उस बालक को एकान्त में उकरड़े पर फेंक दिया। उस बालक के एकान्त में उकरड़े पर फैंके जाने पर वह अशोकवाटिका प्रकाश से व्याप्त हो गई। इस समाचार को सुन कर राजा श्रेणिक अशोक-वाटिका में पहुँचा। वहाँ उस बालक को एकान्त में उकरड़े पर पड़ा हुआ देख कर क्रोधित हो उठा यावत् रुष्ट, कुपित और चंडिकावत् रौद्र होकर दाँतों को मिसमिसाते हुए उस बालक को उसने हथेलियों में लिया और जहाँ चेलना देवी थी, वहाँ आया। आकर चेलना देवी को भले-बुरे शब्दों में फटकारा, परुष वचनों से अपमानित किया और धमकाया। फिर इस प्रकार कहा - 'तुमने क्यों मेरे पुत्र को एकान्त-उकरड़े पर फिकवाया ?' इस तरह कह कर चेलना देवी को भली-बुरी सौगंध-शपथ दिलाइ और कहा - देवानुप्रिये! इस बालक की देखरेख करती हुई इसका पालन-पोषण करो और संवर्धन करो। तब चेलना देवी ने श्रेणिक राजा के इस आदेश को सुन कर लज्जित, प्रताड़ित और अपराधिनीसी होकर दोनों हाथ जोड़कर श्रेणिक राजा के आदेश को विनयपूर्वक स्वीकार किया और अनुक्रम से उस बालक की देख-रेख, लालन-पालन करती हुई वर्धित करने लगी। - एकान्त उकरड़े पर फेंके जाने के कारण उस बालक की अंगुली का आगे का भाग मुर्गे की चोंच से छिल गया था और उसे बार-बार पीव और खून बहता रहता था। इस कारण वह बालक वेदना से चीख-चीख कर रोता था। उस बालक के रोने को सुन और समझ कर श्रेणिक राजा बालक के पास आता और उसे गोदी में लेता। लेकर उस अंगुली को मुख में लेता और उस पीव और खून को मुख से चूस लेता (और थूक देता)! ऐसा करने से वह बालक शांति का अनुभव कर चुप-शांत हो जाता। इस प्रकार जब जब भी वह बालक वेदना के कारण जोर-जोर से रोने लगता, तब-तब श्रेणिक राजा उस बालक के पास आता, उसे हाथों में लेता और उसी प्रकार चूसता यावत् वेदना शांत हो जाने से वह चुप हो जाता था। तत्पश्चात् उस बालक के माता पिता ने तीसरे दिन चन्द्र सूर्य दर्शन का संस्कार किया, यावत् ग्यारह दिन के बाद बाहरवें दिन इस प्रकार का गुण-निष्पन्न नामकरण किया - क्योंकि हमारे इस बालक को एकान्त उकरड़े पर फेंके जाने से अंगुली का ऊपरी भाग मुर्गे की चोंच से छिल गया था इसलिये हमारे इस बालक का नाम 'कूणिक' हो। इस प्रकार उस बालक के माता पिता ने उसका 'कूणिक' यह नामकरण किया। तत्पश्चात् उस बालक का जन्मोत्सव आदि मनाया गया। यावत् (वह बड़ा हो कर) मेघकुमार के समान राजप्रासाद में आमोद-प्रमोद पूर्वक समय व्यतीत करने लगा। (आठ कन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण हुआ और) माता-पिता ने आठ-आठ वस्तुएं प्रीतिदान (दहेज) में प्रदान की। कूणिक का कुविचार तए णं तस्स कूणियस्स कुमारस्स अन्नया पुव्वरत्ता० (जाव) समुप्पज्जित्था – “एवं खलु
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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