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________________ वर्ग १: प्रथम अध्ययन ] [१३ उस श्रेणिक राजा की चेलना नाम की एक दूसरी सनी थी। वह सुकुमाल हाथ-पैर वाली थी इत्यादि उसका वर्णन समझ लेना चाहिये, यावत् सुखपूर्वक विचरण करती थी। किसी समय शयनगृह में चिन्ताओं आदि से मुक्त सुख-शय्या पर सोते हुये चेलना देवी प्रभावती देवी के समान स्वप्न में सिंह को देखकर जागृत हुई, यावत् स्वप्न-पाठकों को आमंत्रित करके राजा ने उसका फल पूछा। स्वप्न-पाठकों ने स्वप्न का फल बतलाया। स्वप्न-पाठकों को विदा किया। यावत् चेलना देवी उन स्वप्न-पाठकों के वचनों को सहर्ष स्वीकार करके अपने वासभवन के अंदर चली गई। विवेचन - उक्त गद्यांश में आगत – जहा चित्तो जहा पभावई और 'जाव' शब्द से संकेतित आशय इस प्रकार है - जहा चित्तो - राजप्रश्नीयसूत्र में प्रदेशी राजा के वृत्तान्त में चित्त सारथी का वर्णन किया गया है। यह प्रदेशी राजा का मंत्री सरीखा था, जो साम आदि चार प्रकार की राजनीतियों का जानकार था। औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी और परिणामिकी, इन चार प्रकार की बुद्धियों से सम्पन्न था (जिन से कठिन से कठिन कार्य करने का सही उपाय निकाल लेता था) पारिवारिक समस्याओं, गोपनीय कार्यों और रहस्यमय अवसरों पर राजा को सच्ची सलाह देता था। राज्य-शासन का प्रमुख था इत्यादि। इसी प्रकार से अभय कुमार भी राजा श्रेणिक के प्रत्येक कार्य का कर्ता था। राज्य के गुप्त से गुप्त रहस्य को जानता था। जहा पभावई - यह हस्तिनापुर नगर के बल राजा की रानी थी। भगवती सूत्र शतक ११ उ. ११ में महाबल के जन्मादि का विस्तार से वर्णन किया गया है। महाबल के गर्भ में आने पर प्रभावती देवी ने प्रशस्त लक्षणों से युक्त सिंह को स्वप्न में देखा था। स्वप्न-दर्शन के बाद स्वप्न की बात अपने पति राजा बल को बतलाई। राजा बल ने अपने बुद्धि-ज्ञान के आधार से उस स्वप्न का शुभ फल बताया और कहा कि कुल के भूषण रूप पुत्र का जन्म होगा। फिर राजा ने स्वप्न-पाठकों को बुलाया। उन्होंने विस्तार से स्वप्न-शास्त्र का वर्णन करके कहा कि आपको राजकुमार की प्राप्ति होगी। वह या तो विशाल राज्य का स्वामी होगा अथवा महान् ज्ञान-ध्यान-तप से सम्पन्न अनगार होगा इत्यादि। ___ महाबल कुमार का वृत्तान्त परिशिष्ट में दिया जा रहा है। चेलना का दोहद १२. तए णं तीसे चेल्लणाए अन्नया कयाइ तिण्हं मासाणं बहुपुडिपुण्णाणं अयमेयारूवे दोहले पाउन्भूए – 'धन्नाओ णं ताओ अम्मयाओ, (जाव) जम्मजीवियफले जाओ णं सेणियस्स रन्नो उयरवलीमंसेहिं सोल्लेहि य तलिएहि य भाज्जिएहि य सुरं च (जाव) पसन्नं च आसाएमाणीओ जाव विसाएमाणीओ परिभुंजेमाणीओ परिभाएमाणीओ दोहलं पविणेन्ति।' तए णं सा चेल्लणा देवी तंसि दोहलंसि अविणिजमाणंसि सुक्का भुक्खा निम्मंसा ओलुग्गा ओलुग्गसरीरा नित्तेया दीणविमणवयणा पण्डुइयमुही ओमन्थियनयणवयणकमला जहोचियं
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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