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[ निरयावलिकासूत्र
___ एवं खलु, गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नामं नयरे होत्था, रिद्धस्थिमियसमिद्धे। तत्थ णं रायगिहे नयरे सेणिए नाम राया होत्था, महया। तस्स णं सेणियस्स रन्नो नन्दा नामं देवी होत्था, सोमाला. (जाव) विहरइ। तस्स णं सेणियस्स रन्नो नन्दाए देवीए अत्तए अभए नाम कुमारे होत्था, सोमाले. (जाव) सुरूवे, सामदामभेयदण्ड. जहा चित्ता, (जाव) रज्जधुराए चिन्तए यादि होत्था। तस्स णं सेणियस्स रन्नो चेल्लणा नामं देवी होत्था, सोमाला (जाव) विहरइ॥
तए णं सा चेल्लणा देवी अन्नया कयाइ तंसि तारिसयंसि वासघरंसि जाव सीहं सुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा, जहा पभावई, (जाव) सुमिणपाढगा पडिविसज्जिया, (जाव) चेल्लणा से वयणं पडिच्छित्ता जेणेव सए भवणे तेणेव अणुपविट्ठा।
११. भगवान् गौतम, श्रमण भगवान् महावीर के समीप आये और 'भदन्त!' इस प्रकार संबोधन करते हुये उन्होंने यावत् वंदन-नमस्कार किया। वंदन-नमस्कार करके अपनी जिज्ञासा व्यक्त करते हुये इस प्रकार निवेदन किया - भगवन् ! तीन हजार हाथियों आदि के साथ जो काल कुमार रथमूसल संग्राम करते हुये चेटक राजा के एक ही आघात-प्रहार से रक्तरंजित हो, जीवन-रहित-निष्प्राण होकर मरण के अवसर पर मृत्यु को प्राप्त करके कहाँ गया है ? कहाँ उत्पन्न हुआ है ?
'गौतम!' इस प्रकार से संबोधित कर भगवान् ने गौतम स्वामी से कहा - 'गौतम! तीन हजार हाथियों आदि के साथ युद्धप्रवृत्त वह काल कुमार जीवनरहित होकर काल मास में काल करके चौथी पंकप्रभा पृथ्वी के हेमाभ नरक में दस सागरोपम की स्थिति वाले नैरयिकों में नारक रूप में उत्पन्न हुआ है।
- गौतम ने पुनः पूछा – भदन्त! किस प्रकार के भोगों संभोगों, भोग-संभोगों को भोगने से, कैसे-कैसे आरम्भों और आरम्भ-समारम्भों से तथा कैसे आचारित अशुभ कर्मों के भार से मरण समय में मरण करके वह काल कुमार चौथी पंकप्रभा पृथ्वी में यावत् नैरयिक रूप से उत्पन्न हुआ है ?.
गौतम स्वामी के उक्त प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने बताया – गौतम! उसका कारण इस प्रकार है -
उस काल और उस समय में राजगृह नामक नगर था। वह नगर वैभव से सम्पन्न, शत्रुओं के भय से रहित और धन-धान्यादि की समृद्धि से युक्त था। उस राजगृह नगर में हिमवान् शैल के सदृश महान् श्रेणिक राजा राज करता था। श्रेणिक राजा की अंग-प्रत्यंगों से सुकुमाल नन्दा नाम की रानी थी, जो मानवीय काम भोगों को भोगती हुई यावत् समय व्यतीत करती थी। उस श्रेणिक राजा का पुत्र और नन्दा रानी का आत्मज अभय नामक राजकुमार था, जो सुकुमाल यावत् सुरूप था तथा साम, दाम, भेद
और दण्ड की राजनीति में चित्त सारथी के समान निष्णात था यावत् राज्यधुरा-शासन का चिन्तक था-चतुर संचालक था।
१. चित्त सारथि का परिचय देखिए राजप्रश्नीय पृ. १३१ (आ.प्र. समिति, ब्यावर)