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________________ इससे पूर्व, सन् १८८५ में आगमसंग्रह बनारस से चन्द्रसूरिकृत वृत्ति, गुजराती विवेचन के साथ, एक संस्करण प्रकाशित हुआ था। सन् १९३२ में श्री पी. एल. वैद्य, पूना एवं सन् १९३४ में ए. एस. गोपाणी और वी. जे. चोकसी अहमदाबाद द्वारा प्रस्तावना के साथ वृत्ति प्रकाशित की गई। वि. सं. १९९० में मूल व टीका के गुजराती अर्थ के साथ जैन धर्म प्रसारक सभा, भावनगर द्वारा एक संस्करण प्रकाशित हुआ। सन् १९३४ में गुर्जर ग्रन्थ कार्यालय अहमदाबाद से भावानुवाद निकला। वीर सं. २४४५ में हिन्दी अनुवाद के साथ हैदराबाद से आचार्य अमोलक ऋषि जी म. ने एक संस्करण निकाला था। सन् १९६० में जैन शास्त्रोद्धारक समिति, राजकोट से आचार्य घासीलालजी महाराज ने संस्कृत व्याख्या हिन्दी और गुजराती अनुवाद के साथ प्रकाशित करवाया। पुप्फभिक्खुजी ने सन् १९५४ में ३२ आगमों के साथ इन आगमों का भी प्रकाशन करवाया। इस तरह निरयावलिका और शेष उपांगों का समय-समय पर प्रकाशन हुआ है। प्रस्तुत संस्करण श्रमणसंघीय युवाचार्य मधुकर मुनिजी महाराज के कुशल नेतृत्व में आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर द्वारा ३२ आगमों के प्रकाशन का महान् कार्य चल रहा है। इस आगम प्रकाशन माला से अभी तक अनेक आगम विविध विद्वानों के द्वारा सम्पादित होकर प्रकाशित हो चुके हैं। जिन आगमों की मूर्धन्य, मनीषियों ने मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की है, उसी आगम माला के प्रकाशन की कड़ी की लड़ी में निरयावलिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिका, पुष्पचूला और वृष्णिदशा इन पाँचों उपांगों का एक जिल्द में प्रकाशन हो रहा है। इसमें शुद्ध मूलपाठ है, अर्थ है और परिशिष्ट हैं। इसके अनुवादक और सम्पादक हैं - देवकुमार जैन जो पहले अनेक ग्रन्थों का सम्पादन कर चुके हैं। सम्पादन का श्रम यत्र-तत्र मुखरित हुआ है। साथ ही सम्पादनकलामर्मज्ञ, लेखन-शिल्पी पंडित शोभाचन्दजी भारिल्ल की सूक्ष्म-मेधा-शक्ति का चमत्कार भी दृग्गोचर होता है। प्रस्तावना लिखते समय स्वास्थ्य सम्बन्धी अनेक व्यवधान उपस्थित हुये जिनके कारण चाहते हुये भी अधिक विस्तृत प्रस्तावना मैं नहीं लिख सका। इस आगम में ऐसे अनेक जीवन-बिन्दु हैं जिनकी तुलना अन्य ग्रन्थों के साथ सहज की जा सकती है। इन आगमों में भगवान् महावीर, भगवान् पार्श्व और भगवान् अरिष्टनेमि के युग के कुछ पात्रों का निरूपण है। तथापि संक्षेप में कुछ पंक्तियाँ लिख गया हूँ। आशा है जिज्ञासुओं के लिये ये पंक्तियाँ सम्बल रूप में उपयोगी होंगी। परम श्रद्धेय राजस्थानकेसरी अध्यात्मयोगी उपाध्याय पूज्य, गुरुदेव श्री पुष्कर मुनिजी महाराज के हार्दिक आशीर्वाद के कारण ही आगम साहित्य में अवगाहन करने के सुनहरे क्षण प्राप्त हुए हैं, जिसे मैं अपना सौभाग्य मानता हूँ। आशा ही नहीं अपितु दृढ़ विश्वास है कि पूर्व आगमों की तरह ये आगम भी पाठकों के लिये प्रकाश-स्तम्भ की तरह उपयोगी सिद्ध होंगे। - देवेन्द्रमुनि शास्त्री जैन स्थानक मदनगंज दि. ६-११-८३ [३५]
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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