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________________ श्रीदेवी – एक बार श्रीदेवी भगवान् महावीर को वन्दन करने के लिये राजगृह में आई। जब वह नाटक दिखा कर लौट गई तो गणधर गौतम ने उसके पूर्वभव के सम्बन्ध में पूछा। भगवान् ने कहा - राजगृह में सुदर्शन श्रेष्ठी की ज्येष्ठ पुत्री का नाम भूता था। वह पार्श्वनाथ के पास प्रवजित हुई पर उसका अपने शरीर पर ममत्व था। वह उसकी सार-सम्भाल में लगी रहती। उसने अतिचार की आलोचना नहीं की। मरकर सौधर्म देवलोक में देवी हुई। बहुपुत्रिका – यह देवी भगवान् को वन्दन करने राजगृह में आई। भगवान् ने इसका पूर्वभव बताते हुए कहा – वाराणसी नगरी में भद्र सार्थवाह था। सुभद्रा उसकी भार्या थी। वह वंध्या थी। उसके मन में संतान की प्रबल इच्छा थी। साध्वियां एक बार भिक्षा के लिये गईं। उनसे पुत्र-प्राप्ति का उपाय पूछा। उन्होंने धर्म की बात कही। वह प्रव्रजित हुई। दीक्षित होने पर भी वह बालकों से बहुत प्यार करती। अतिचार का सेवन किया। मरकर सौधर्म में देवी हुई। प्रस्तुत उपांग में जो चरित्र हैं वे कथा की दृष्टि से सांगोपांग नहीं हैं। कथा का उतना ही भाग दिया गया है जितने से उनके नायकों के परलोक के जीवन पर प्रकाश पड़ता है। वर्तमान जीवन का चित्रण बहुत ही कम हुआ है। जीवन के मर्म स्थल को यत्र-तत्र छूआ गया है। साधकों की साधना इतनी अधिक प्रबल है कि उसमें कथातत्त्व दब गया है। तथापि यह नि:संकोच कहा जा सकता है कि इस उपांग की कथाओं से स्वसमय और परसमय का ज्ञान सहज हो जाता है। पुष्फचूला : पुष्पचूला इस उपांग के भी दस अध्ययन हैं। इन दस अध्ययनों के नाम इस प्रकार हैं – १. श्रीदेवी २. ह्रीदेवी ३. धृतिदेवी ४. कीर्तिदेवी ५. बुद्धिदेवी ६. लक्ष्मीदेवी ७. इलादेवी ८. सुरादेवी ९. रसदेवी १०. गन्धदेवी। - प्रथम अध्ययन की कथा का सार इस प्रकार है - एक बार भगवान् महावीर राजगृह नगर में विराजमान थे। श्रीदेवी सौधर्म कल्प से दर्शनार्थ आई। उसने दिव्य नाटक किये। गौतम की जिज्ञासा पर भगवान् ने कहा – पूर्वभव में यह सुदर्शन श्रेष्ठी की भूता नामक पुत्री थी। युवावस्था में भी वह वृद्धा दिखाई देती थी जिससे उसका पाणिग्रहण नहीं हो सका। भगवान् पार्श्व का आगमन हुआ। भूता ने महासती पुष्पचूलिका के पास श्रमण धर्म स्वीकार किया। परन्तु भूता रात-दिन अपने शरीर को सजाने में लगी रहती। पुष्पचूलिका आर्यिका ने उसे बताया कि यह श्रमणाचार नहीं है। इन पापों की आलोचना कर तुम्हें शुद्धिकरण करना चाहिये। परन्तु उसने आज्ञा की अवहेलना की और पृथक् रहने लगी। बिना आलोचना किए मरकर यह श्रीदेवी हुई। तत्पश्चात् वह महाविदेह में जन्म लेकर निर्वाण प्राप्त करेगी। इसी प्रकार अवशिष्ट नौ अध्ययनों में ही देवी, धृति देवी, कीर्ति देवी आदि का वर्णन है। वे सभी सौधर्म कल्प में निवास करने वाली थीं। वे सभी पूर्व भव में भगवान् पार्श्वनाथ की शिष्या पुष्पचूला के पास दीक्षित हुई थीं और सभी शौच-क्रिया प्रधान थीं। शरीर आदि की शुद्धि पर उनका विशेष लक्ष्य था। ये सभी देवियां देवलोक से च्यवन कर महाविदेह क्षेत्र से सिद्धि प्राप्त करेंगी। [३२]
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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