SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दोनों पृथक्-पृथक् ही सिद्ध होते हैं। नामसाम्य से भ्रम में पड़ना उचित नहीं। ____भगवान् पार्श्व के वाराणसी से विहार करने के पश्चात् सोमिल कुसंगति के कारण पुनः मिथ्यात्वी बन गया और उसने दिशाप्रोक्षक तापसों के पास प्रव्रज्या ग्रहण की। प्रस्तुत कथानक में चालीस प्रकार के तापसों का विवरण प्राप्त होता है। उनमें से कितने ही तापस इस प्रकार थे - १. केवल एक कमण्डलु धारण करने वाले। २. केवल फलों पर निर्वाह करने वाले। ३. एक बार जल में डुबकी लगाकर तत्काल बाहर निकलने वाले। ४. बार-बार जल में डुबकी लगाने वाले। ५. जल में ही गले तक डूबे रहने वाले ६. सभी वस्त्रों, पात्रों और देह की प्रक्षालित रखने वाले। ७. शंख ध्वनि कर भोजन करने वाले। ८. सदा खड़े रहने वाले। ९. मृग-मांस के भक्षण पर निर्वाह करने वाले। १०. हाथी का मांस खाकर रहने वाले। ११. सर्वदा ऊँचा दण्ड किये रहने वाले। १२. वल्कल-वस्त्र धारण करने वाले। १३. सदा पानी में रहने वाले। १४. सदा वृक्ष के नीचे रहने वाले। १५. केवल जल पर निर्वाह करने वाले १६. जल के ऊपर आने वाली शैवाल खाकर जीवल चलाने वाले। १७. वायु भक्षण करने वाले। . १८. 'वृक्ष-मूल का आहार करने वाले। १९. वृक्ष के कन्द का आहार करने वाले। २०. वृक्ष के पत्तों का आहार करने वाले। २१. वृक्ष की छाल का आहार करने वाले। २२. पुष्पों का आहार करने वाले। २३. बीजों का आहार करने वाले। [२९]
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy