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________________ धर्म भी है, यह उन्होंने स्वीकार नहीं किया है। देव सोम का पान करके अमर बनते हैं। यह भी बताया गया है – अग्नि और सविता उन्हें अमरत्व प्रदान करती हैं। देवता नीतिसम्पन्न हैं, वे प्रामाणिक और चरित्रनिष्ठ व्यक्तियों की रक्षा करते हैं, अपने भक्तों पर अनुग्रह करते हैं। शक्ति सौन्दर्य और तेज के वे अधिपति हैं। इस प्रकार ऋग्वेद में देवताओं का एक निश्चित क्रम निरूपित नहीं है। सभी देवों का निवास द्युलोक में ही माना गया है। वैदिक ऋषियों ने लोक को तीन भागों में विभक्त किया है। द्यो, वरुण, सूर्य, मित्र, विष्णु दक्ष प्रभृति देव धुलोक में रहते हैं। इन्द्र, मरुत, रुद्र, पर्जन्य, आपः आदि देव अंतरिक्ष में निवास करते हैं। अग्नि सोम बृहस्पति आदि देवों का निवास पृथ्वी है। . जो मानव वर्तमान जीवन में शुभ कृत्य करता है, वह मानव स्वर्ग लोक में जाता है। वहां पर उसे प्रचुर मात्रा में अन्न और सोम मिलता है जिससे उसकी सभी कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं ।५६ कितने ही व्यक्ति विष्णुलोक में जाते हैं तो कितने ही व्यक्ति वरुणलोक८ में जाते हैं। वरुणलोक सर्वोच्च स्वर्ग है।५९ बृहदारण्यक उपनिषद् में ब्रह्मलोक का आनन्द सर्वाधिक माना है। बृहदारण्यकार छान्दोग्योपनिषद् और कौषीतकी उपनिषद में देवयान और पितृयान मार्गों का विशद वर्णन है। पौराणिक युग में तीन लोकों में देवों का निवास माना गया है। आचार्य व्यास ने योगदर्शन व्यासभाष्य के अनुसार पाताल, जलधि और पर्वतों में असुर, गन्धर्व किन्नर, किंपुरुष, यक्ष, राक्षस, भूत, प्रेत, पिशाच, अपस्मारक, अप्सरस्, ब्रह्म राक्षस, कूष्माण्ड, विनायक निवास करते हैं। भूलोक के सभी द्वीपों में पुण्यात्मा देवों का निवास है। सुमेरु पर्वत पर देवों के उद्यान हैं। सुधर्मानाम की देव सभा है, सुदर्शन नामक नगरी है, उस नगरी में वैजयन्त नामक प्रासाद है। अंतरिक्ष लोक के देवों में ग्रह, नक्षत्र, तारागण आते हैं। त्रिदश, अग्निष्वात्ता, याम्या, तुषित, अपरिनिर्मितवशवर्ती, परिनिर्मितवशवर्ती, महेन्द्र स्वर्ग में इन छह देवों का निवास है। कुमुद, ऋभु, प्रतर्दन, अंजनाभ, प्रचिताभ, ये पांच देव निकाय प्रजापति लोक में रहते हैं। ब्रह्मपुरोहित, ब्रह्मकायिक, ब्रह्ममहाकायिक और अमर, ये चार देव निकाय ब्रह्मा के प्रथम जनलोक में रहते हैं। महाभास्वर, सत्यमहाभास्वर ये तीन देव निकाय ब्रह्मा के द्वितीय तपोलोक में रहते हैं। अच्युत, शुद्धनिवास, सत्याभ, संज्ञा-संज्ञी, ये चार देव निकाय ब्रह्मा के तृतीय सत्यलोक में रहते हैं। ५६. ऋग्वेद ९-११३-७ ५७. ऋग्वेद १-१-५४ ।। ५८. ऋग्वेद ७-८-५ ५९. ऋग्वेद १०-१४-८, १०-१५-७ ६० बृहदारण्यक उपनिषद्, ४-३-३३ ६१. बृहदारण्यक उपनिषद्, ५-१०-१ ६२. छान्दोग्योपनिषद् ४-१५, ५-६, ५/१०/१-६ ६३. कौषीतकी १/२-४ ६४. योगदर्शन व्यास-भाष्य, विभूतिपाद, २६ [२७]
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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