________________
परिशिष्ट-२ ]
[ १३९
मुच्चिहिइ परिनिव्वाहिइ सव्वदुक्खाणमन्तं करेहिइ।
१०. तत्पश्चात् वे दृढ़प्रतिज्ञ केवली इस प्रकार के विहार से विचरण करते हुये और अनेक वर्षों तक केवलि-पर्याय का पालन कर आयु के अन्त को जानकर, अनेक भक्तों - भोजनों का प्रत्याख्यान व त्याग करेंगे और अनशन द्वारा बहुत से भोजनों का छेदन करेंगे और जिस (साध्य) की सिद्धि के लिये नग्नभाव, केशलोंच, ब्रह्मचर्य धारण, स्नान का त्याग, दंतधावन का त्याग, पादुका का त्याग, भूमि पर शयन करना, काष्ठासन पर सोना, भिक्षार्थ परगृह प्रवेश, लाभ-अलाभ में सम रहना, मानापमान सहना, दूसरों के द्वारा की जाने वाली हीलना (तिरस्कार), निन्दा, खिंसना (अवर्णवाद), तर्जना (धमकी), ताड़ना, गर्दा (घृणा) एवं अनुकूल-प्रतिकूल अनेक प्रकार के बाईस परीषह, उपसर्ग तथा लोकापवाद (गाली-गलौच) सहन किए जाते हैं, उस साध्य-मोक्ष की साधना करके चरम श्वासोच्छ्वास में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त हो जायेंगे, सकल कर्ममल का क्षय और समस्त दुःखों का अन्त करेगे।
(राजप्रश्नीय सूत्र से उद्धृत)