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________________ १३८ ] [दृढप्रतिज्ञ : (सम्बद्ध अंश) फिर भी वे पंकरज और जलरज से लिप्त नहीं होते हैं, इसी प्रकार वह दृढ़प्रतिज्ञ दारक भी कामों में उत्पन्न हुआ, भोगों के बीच लालन-पालन किये जाने पर भी उन कामभोगों में एवं मित्रों, ज्ञातिजनों, निजी स्वजन-सम्बन्धियों, परिजनों में अनुरक्त नहीं होगा और तथारूप स्थविरों से केवलबोधि-सम्यग्ज्ञान का लाभ प्राप्त करेगा एवं मुंडित होकर, गृहत्याग कर अनगार-प्रव्रज्या अंगीकार कर ईर्यासमिति आदि अनगार धर्म का पालन करते हुए सुहुत (अच्छी तरह से होम की गई) हुताशन (अग्नि) की तरह अपने तपस्तेज से चमकेगा, दीप्तिमान् होगा। ८. तस्स णं से भगवओ अणुत्तरेणं नाणेणं एवं दसणेणं चरित्तेणं आलएणं विहारेणं अज्जवेणं महवेणं लाघवेणं खन्तीए गुत्तीए मुत्तीए अणुत्तरेणं सव्वसंजमतवसुचरियफलनिव्वाणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स अणन्ते अणुत्तरे कसिणे पडिपुण्णे निरावरणे निव्वाघाए केवलवरनाणदंसणे समुष्पजिहिइ। ८. इसके साथ ही अनुत्तर (सर्वोत्तम) ज्ञान, दर्शन, चारित्र अप्रतिबद्ध विहार, आर्जव, मार्दव, लाघव, क्षमा, गुप्ति, मुक्ति (निर्लोभता), सर्व संयम एवं निर्वाण की प्राप्ति जिसका फल है, ऐसे तपोमार्ग से आत्मा को भावित करते हुए, (उन भगवान् दृढ़प्रतिज्ञ को) अनन्त, अनुत्तर सकल, परिपूर्ण, निरावरण, निर्व्याघात, अप्रतिहत, सर्वोत्कृष्ट केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त होगा। ___ ९. तए णं से भगवं. अरहा जिणे केवली भविस्सइ, सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स परियागं जाणिहिइ। तं जहा - आगई गई ठिई चवणं उववायं तक्कं कडं मणोमाणसियं खइयं भुत्तं पडिसेवियं आवीकम्मं रहोकम्म-अरहा अरहस्सभागी, तं तं मणवयजीगे वट्टमाणाणं सव्वलोए सव्वजीवाणं सव्वभावे जाणमाणे पासमाणे विहरिस्सइ। ९. तब वे दृढ़प्रतिज्ञ भगवान अर्हत जिन केवली हो जाएंगे। जिसमें देव, मनुष्य तथा असुर आदि रहते हैं, ऐसे लोक की समस्त पर्यायों को वे जानेंगे। वे प्रणिमात्र की आगति - एक गति से दूसरी गति में आगमन को, गति - वर्तमान गति को छोड़कर अन्य गति में गमन को, स्थिति, च्यवन, उपपात (देव या नारक जीवों की उत्पत्ति-जन्म) तर्क (विचार), क्रिया, मनोभावों, क्षय प्राप्त (भोगे जा चुके) प्रतिसेवित (भुज्यमान भोगोपभोग की वस्तुएँ), आविष्कर्म (प्रकट कार्यों), रह:कर्म (एकान्त में किये गुप्त कार्यों) प्रकट और गुप्त रूप से होने वाले उस-उस-मन, वचन और काय योग में विद्यमान लोकवर्ती सभी जीवों के सर्वभावों को जानते-देखते हुये विचरण करेंगे। १०. तए णं दढपइन्ने केवली एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे बहूई वासाइं केवलिपरियागं पाउणित्ता अप्पणो आउसेसं आभोएत्ता बहूई भत्ताई पच्चक्खाइस्सइ। पच्चक्खाइत्ता बहूई भत्ताई अणसणाए छेइस्सइ। छेदत्ता जस्सट्टाए कीरइ नग्गभावे मुण्डभावे केसलोए बम्भचेरवासे अण्हाणगं अदन्तवणं अणुवहाणगं भूमिसेजाओ फलहसेजाओ परघरपवेसा लद्धावलद्धाई माणावमाणाई परेसिं हीलणाओ खिंसणाओ गरहणा उच्चावया विरूवा बावीसं परीसहोवसग्गा गामकण्टगा अहियासिजन्ति तमढं आराहेइ। आराहित्ता चरिमेहिं उस्सासनिस्सासेहिं सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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