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[महाबल
आलोइय पडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा उड़े चन्दिमसूरियं जहा अम्मडो, जाव बम्भलोए कप्पे देवत्ताए उववन्ने। तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं दस सागरोवमाइं ठिई पन्नत्ता, तत्थ णं महब्बलस्स वि दस सागरोवमाई ठिई पन्नत्ता।।
२७. तत्पश्चात् महाबल अनगार ने धर्मघोष स्थविर के पास सामायिक से प्रारम्भ कर चौदह पूर्वो का अध्ययन किया। अध्ययन करके बहुत से चतुर्थभक्त (उपवास) यावत् विविध विचित्र तपःकर्म से आत्मा को भावित-शोधित करते हुए परिपूर्ण बारह वर्ष तक श्रमण पर्याय का पालन किया, पालन करके एक मास की संलेखना पूर्वक साठ भक्तों का अनशन द्वारा त्याग कर आलोचना - प्रतिक्रमण करते हुए समाधि सहित काल मास में कालप्राप्त हो यावत् अम्बड के समान ऊर्ध्व दिशा में चन्द्र सूर्य आदि से बहुत दूर ऊपर ब्रह्मलोक कल्प में देवरूप से उत्पन्न हुए। वहाँ कितने ही देवों की दस सागरोपम की स्थिति होती है। महाबल देव की भी दस सागर की स्थिति हुई। .
(हे सुदर्शन! तुम पूर्वभव में दस सागरोपम पर्यन्त दिव्य भोगोपभोगों की भोगकर आयुक्षय, भवक्षय और स्थितिक्षय के अनन्तर उस देवलोक से च्युत होकर इसी वाणिज्यग्राम नगर के श्रेष्ठीकुल में पुत्र रूप से उत्पन्न हुए हो।)
(भगवतीसूत्र शतक ११, उद्देशक ११ से)