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________________ परिशिष्ट-१ ] [ १३३ इमाओ य ते जाया, विउलरायकुलवालियाओ, कला० सेसं तं चेव जाव ताहे अकामाई चेव महब्बलकुमारं एवं वयासी - 'तं इच्छामो ते, जाया, एगदिवसमवि रज्जसिरि पासित्तए।' तए णं से महब्बले कुमारे अम्मापियराणं वयणमणुयत्तमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ। २५. तत्पश्चात् उस महाबल कुमार ने उस महान् जन-कोलाहल को सुन कर और जन-समूह एक ही दिशा में जाते देख कर जमालिकुमार के समान विचार किया। कंचुकी पुरुषों को बुलाया। कंचुकी पुरुषों ने उसी प्रकार कारण बतलाया। किन्तु इतना अंतर है कि उन कंचुकी पुरुषों ने धर्मघोष अनगार के आगमन के निश्चित समाचार जानकर हाथ जोड़ महाबल कुमार से निवेदन किया - देवानुप्रिय! अर्हत् विमल प्रभु के प्रपौत्र शिष्य धर्मघोष अनगार यहाँ पधारे हैं, यावत् जन-समूह उनकी उपासना करने जा रहा है। शेष वर्णन उसी प्रकार है यावत् वह महाबल कुमार भी जमाली की तरह उत्तम रथ पर आरूढ़ होकर दर्शन-वंदनार्थ निकला। धर्मघोष अनगार ने केशी स्वामी के समान धर्मोपदेश दिया। उस महाबल कुमार ने भी उसी प्रकार माता-पिता से पछा किन्त अन्तर यह है कि धर्मघोष अनगार के पास मुंडित होकर अगार त्याग कर अनगार प्रव्रज्या से प्रव्रजित होना चाहता हूँ, ऐसा कहा। जमालि कुमपर के समान महाबल कुमार और उसके माता-पिता के बीच उत्तर-प्रत्युत्तर हुए यावत् उन्होंने कहा – हे पुत्र! यह विपुल धन और उत्तम राज्यकुल में उत्पन्न हुई, कलाओं में कुशल आठ बालाआ को त्याग कर अभी दीक्षा मत लो आदि यावत् जब माता-पिता उसे समझाने में समर्थ नहीं हुए तब अनिच्छापूर्वक महाबल कुमार से इस प्रकार कहा – 'हे पुत्र! एक दिन के लिये ही सही किन्तु हम तुम्हारी राज्यश्री को देखना चाहते हैं।' तब महाबल कुमार माता-पिता को उत्तर न देकर मौन ही रहा। २६. तए णं से बले राया कोडुम्बियपुरिसे सद्दावेइ एवं जहा सिवभहस्स तहेव रायाभिसेओ भाणियव्वो, जाव अभिसिञ्चइ। करयलपरिग्गहियं महब्बलं कुमारं 'जएणं विजएणं वद्धावेन्ति, वद्धावित्ता जाव एवं वयासी - 'भण, जाया, किं पयच्छामो,' सेसं जहा जमालिस्स तहेव, जाव। २६. तत्पश्चात् बल राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। यावत् महाबल कुमार को शिवभद्र के समान राज्याभिषेक से अभिषिक्त किया, इत्यादि वर्णन यहाँ जान लेना चाहिये। अभिषेक के पश्चात् दोनों हाथ जोड़ जय-विजय शब्दों से महाबल कुमार को बधाया, यावत् इस प्रकार कहा - हे पुत्र! बताओ हम तुम्हें क्या दें ? इत्यादि शेष समस्त वर्णन जमालि के समान जानना चाहिये। ____ २७. तए णं से महब्बले अणगारे धम्मघोसस्स अन्तियं सामाइयाइं चोइस्स पुव्वाइं अहिजइ, अहिज्जित्ता बहूहिं चउत्थ जाव विचित्तेहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणे बहुपडिपुण्णाई दुवालसवासाइं सामण्णपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए सष्टुिं भत्ताई अणसणाए
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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