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परिशिष्ट-१ ]
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..२१. तए णं तं महब्बलं कुमारं अम्मापियरो साइरेगट्ठवासगं जाणित्ता सोभणंसि तिहिकरण-नक्खत्त-मुहत्तंसि, एवं जहा दढप्पइन्नो, जाव अलंभोगसमत्थे जाए यावि होत्था।
तए णं तं महब्बलं कुमारं उम्मुक्कबालभावं जाव अलंभोगसमत्णं वियाणित्ता अम्मापियरो अट्ठ पासायवडिंसगाणं बहुमज्झदेसभागे एत्थ ण महेगं भवणं करेन्ति अणेगखम्भसयसंनिविठं, वण्णओ जहा रायपसेणइज्जे, पेच्छाघरमण्डवंसि जाव पडिरूवे।
२१. तत्पश्चात् माता-पिता ने उस महाबल कुमार को कुछ अधिक आठ वर्ष का हुआ जानकर शुभतिथि, करण, नक्षत्र और मुहुर्त में दृढ़प्रतिज्ञ कुमार के समान कलाचार्य के पास कलाध्ययन के लिये भेजा यावत् वह भोग भोगने में समर्थ हो गया।
___ इसके बाद उस महाबल कुमार को बाल्यावस्था को पार कर यावत् भोग भोगने के योग्य जानकर माता-पिता ने आठ प्रासादावतंसकों का निर्माण कराया। वे प्रासाद अपनी ऊँचाई से आकाश को स्पर्श करते थे इत्यादि जैसा राजप्रश्नीय सूत्र में प्रासादों का वर्णन किया गया है तदनुरूप अतीव मनोहर थे, इत्यादि वर्णन जानना चाहिये। उन प्रासादावतंसकों के ठीक मध्य भाग में एक विशाल भवन का निर्माण करवाया। उसमें सैकड़ों खंभे लगे थे, प्रेक्षागृह मण्डप बना था। वह अतीव मनोहर था इत्यादि उसका भी वर्णन राजप्रश्नीय के अनुसार करना चाहिये।
२२. तए णं तं महब्बलं कुमारं अम्मापियरो अनया कयावि सोभणंसि तिहि-करणदिवस-नक्खत्त-मुहुत्तंसि ण्हायं कयबलिकम्मं कयकोउयमङ्गलपायच्छित्तं सव्वालंकारविभूसियं पमक्खणग-ण्हाणगीय-वाइय-पसाहणट्ठङ्गतिलककङ्कण अविहववहुउव-णीयं मङ्गलसुजम्पिएहि य वरकोउयमङलोवयारकयसन्तिकम्मं सरिसयाणं सरित्तयाणं सरिव्वयाणं सरिसलावण्ण-रूव-जोव्वणगुणोववेयाणं विणोयाणं कयकोउय-मङ्गलपायच्छि-त्ताणं सरिसएहितो रायकुलहितो आणिल्लियाणं अट्ठण्हं रायवरकन्नाणं एगदिवसेणं पाणिं गिण्हाविंसु।।
२२. तत्पश्चात् माता-पिता ने किसा समय शुभ तिथि, करण, दिन, नक्षत्र और मुहूर्त में महाबल कुमार को स्नान, बलिकर्म और कौतुक मांगलिक प्रायश्चित्त कराकर सर्व अलंकारों से विभूषित किया। उवटन, स्नान, गीत, वाद्य, प्रसाधन, तिलक आदि करके कंकण आदि पहनाए, सौभाग्यवती नारियों ने मंगलगान किया, उत्तम कौतुक, मंगलोपचार और शांति कर्म किए गये। समान, समान त्वचा, समान वय, समान लावण्य, रूप एवं यौवन गुण से युक्त विनीत, समान राजकुलों से लाई हुई आठ उत्तम राजकन्याओं से उसका एक ही दिन में पाणिग्रहण करवाया।
२३. तए णं तस्स महाबलस्स कुमारस्स अम्मापियरो अयमेयारूवं पीइदाणं दलयन्ति, तं जहा – अट्ठ हिरण्णकोडीओ, अट्ठ सुवण्णकोडीओ, अट्ठ मउडे मउडप्पवरे, अट्ठ कुण्डलजुए कुण्डलजुयप्पवरे, अट्ट हारे हारप्पवरे, अट्ठ अद्धहारे अद्धहारप्पवरे, अट्ठ एगावलिआ १-२. राजप्रश्नीय सूत्र ५० (आगम प्रकाशन समिति, ब्यावर)