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________________ १२८ ] [महाबल चन्दसूरदंसणियं करेइ, छठे दिवसे जागरियं करेइ, एक्कारसमे दिवसे वीइक्कन्ते निव्वुत्ते असुइजायकम्मकरणे, संपत्ते बारसाहदिवसे विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेन्ति, उवक्खडावेत्ता जहा सिवो, जाव खत्तिए य आमन्तेन्ति, आमन्तेत्ता, तओ पच्छा पहाया कय० तं चेव जाव सक्काररेन्ति संमाणेन्ति, संमाणित्ता तस्सेव मित्तणाइ जाव राईण य खत्तियाण य पुरओ अजयपजयपिउपज्जयागयं बहुपुरिसपरंपरप्परूढं कुलाणुरूवं कुलसरिसं कुलसंताणतन्तुवद्धणकरं अयमेयारूवं गोण्णं गुणनिप्फन्नं नामधेनं करेन्ति – 'जम्हा णं अम्हं इमे दारए बलस्स रन्नो पुत्ते पभावईए देवीए अत्तए, तं होउ णं अहं एयस्स दारगस्स नामधेनं महब्बले।' तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधेजं करेन्ति 'महब्बले' त्ति। १९. तत्पश्चात् उस दारक के माता-पिता ने पहले दिन स्थितिपतिका की। तीसरे दिन बालक को सूर्य-चन्द्र का दर्शन कराया। छठे दिन जागरणरूप उत्सव विशेष किया और ग्यारह दिन व्यतीत होने पर जन्म संबंधी अशुचि निवृत्ति का कार्य करके बारहवें दिन विपुल अशन, पान, खाद्य स्वाद्य पदार्थ बनवाए और शिव राजा के समान यावत् मित्रों तथा क्षत्रियों आदि को आमंत्रित किया तत्पश्चात् स्नान एवं बलि कर्म किये हुए बल राजा ने भोजन आदि द्वारा उनका सत्कार-सम्मान किया। फिर उन्हीं मित्रों, जाति बन्धुओं यावत् राजन्यों और क्षत्रियों के समक्ष पितामह, पिता, प्रपितामह आदि से चली आ रही कुलपरम्परा के अनुसार कुलानुरूप, कुलोचित, कुलसंतान (परम्परा) की वृद्धि करने वाला इस प्रकार का यह गुण-युक्त और गुण-निष्पन्न नामकरण किया – क्योंकि हमारा यह बालक बल राजा का पुत्र और प्रभावती देवी का आत्मज है, अतएव हमारे इस बालक का नाम 'महाबल' हो। तब उस बालक के माता-पिता ने उसका 'महाबल' यह नामकरण किया। ___ २०. तए णं से महब्बले दाए पञ्चधाईपरिग्गहिए, तं जहा - खीरधाईए, एवं जहा दढपइन्ने, जाव निवायनिव्वाघायंसि सुहं सुहेणं परिवड्ढइ। तए णं तस्स महब्बलस्स दारगस्स अम्मापियरो अणुपुव्वेणं ठिइवडियं वा चंदसूरदंसावणियं वा जागरियं वा नामकरणं वा परंगामणं वा पयचंकमणं वा जेमामणं वा पिण्डवद्धणं वा पजपावणं वा कण्णवेहणं पा संवच्छरपडिलेहणं वा चोलोयणगं वा उवणयणं वा अन्नाणि य बहूणि गब्भाधाणजम्मणमाइयाइं कोउयाइं करेन्ति। २०. तत्पचात् वह महाबल बालक क्षीरधात्री आदि पांच धाय माताओं द्वारा दृढ़प्रतिज्ञ कुमार के समान पालन किया जाता हुआ निर्वात और निर्व्याघात स्थान में रहे हुए चंपक वृक्ष के समान सुखपूर्वक परिवर्धित होने - बढ़ने लगा। इसके बाद उस महाबल बालक के माता-पिता के अनुक्रम से स्थितिपतिका जन्मदिवस से लेकर चन्द्र-सूर्य दर्शन, जागरण, नामकरण, परंगामण घुटनों चलना, पदचंक्रमण - पैरों से चलना, अन्नप्राशन, पिण्डवर्धन, (भोजन की मात्रा बढ़ाना) संभाषण करना, कर्णवेधन, वर्षगांठ, चोलोपनयन (सिरमुण्डन) उपनयन आदि बहुत से गर्भाधान से लेकर जन्ममहोत्सव आदि तक के कौतुक (संस्कार) किए।
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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