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________________ ११८ ] [महाबल लंबी चौड़ी, सिरहाने और पैहताने दोनों ओर से तकियायुक्त, दोनों ओर से उन्नत, मध्य में कुछ नमी हुई, गंगा की तटवर्ती रेती के अवदाल (पैर रखने पर धंसती हुई) वालू के समान कोमल, क्षोमिक - रेशमी दुकूल पट से आच्छादित, रजस्त्राण से ढंकी हुई, रक्तांशुक (मच्छरदानी) से परिवेष्टित, सुरम्य आजिनक (मृगछाला), रुई, बूर, नवनीत, अर्कतूल (आक की रुई) के समान कोमल स्पर्शवाली, सुगंधित, उत्तम पुष्प-चूर्ण और अन्य शयनोपचार से युक्त पुण्यशलियों के योग्य शैया पर अर्धरात्रि के समय अर्धनिद्रित अवस्था में सोते हुए उदार, कल्याण, शिव, धन्य, मंगलकारक, शोभायुक्त महास्वप्न देखा और देखकर जाग्रत हुई। ३. हाररययखीरसागरससङ्ककिरणदगरयरययमहासेलपण्डुरतरोरुरमणिज्जपेच्छणिजं थिरलट्ठपउट्ठवट्टपीवरसुसिलिट्ठविसिट्ठतिक्खदाढाविडिम्बयमुहं परिकम्मियजच्चकमलकोममाइअसोभन्तलट्ठउठें रत्तुप्पलपत्तमउअसुकुमालतालुजीहं मूसागयपवरकणगताविअआवत्तायन्तवट्ट तडिविमलसरिसनयणं विसालपीवरोरुपडिपुण्णविपुलखन्धं मिउविसदसुहुमलक्खणपसत्थवित्थिण्णकेसरसडोवसोभियं ऊसियसुनिम्मितसुजायअप्फोडिअलगुलं सोमं सोमाकारं लीलायन्तं जम्भायन्तं नहयलाओ ओवयमाणं निययवयणमतिवयन्तं सीहं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धा। ३. वह प्रभावती रानी मोतियों का हार, रजत (चांदी), क्षीरसमुद्र, चंद्रकिरण, जलबिन्दु, रजत महाशैल (वैताढ्य पर्वत) के समान श्वेत - धवल वर्ण वाले; गोल, पुष्ट, सुश्लिष्ट, विशिष्ट और तीक्ष्ण दाढाओं से युक्त मुंह को फाड़े हुए, संस्कारित उत्तम कमल के समान सुकोमल, प्रमाणोपेत ओष्ठों से अतीव सुशोभित, रक्त कमल-पत्र के समान अत्यन्त कोमल तालु और जीभ वाले, मूस में रहे हुए एवं अग्नि में तपाए और आवर्त करते हुए उत्तम स्वर्ण के समान वर्ण वाले, गोल तथा बिजली के समान निर्मल आंखों वाले, विशाल और पुष्ट जंघाओं वाले, परिपूर्ण एवं विपुल स्कंधयुक्त, मृदु विशद, सूक्ष्म एवं प्रशस्त लक्षणों से युक्त केसर से शोभित, सुन्दर और उन्नत पूंछ को पृथ्वी पर फटकारते हुए, सौम्य, सौम्य आकार वाले, लीला करते हुए, उवासी (जंभाई) लेते हुए सिंह को आकाश से नीचे उतर कर अपने मुख में प्रवेश करता हुआ देख जाग्रत हुई। ४. तए णं सा पभावइ देवी अयमेयारूवं ओरालं जाव सस्सिरियं महासुविणं पासित्ताणं पडिबुद्धा समाणी हट्टतुट्ठ जाव हियया धाराहयकलम्बपुष्फगं पिव समूससियरोमकूवा तं सुविणं ओगिण्हइ, ओगिणिहत्ता सयणिज्जाओ अब्भुढेइ, अब्भुट्टित्ता अतुरियमचवलमसंभन्ताए अविलम्बियाए रायहंससरिसीए गईए जेणेव बलस्स रन्नो सयणिजे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बलं रायं ताहिं इट्ठाहिं कन्ताहिं पियाहिं मणुण्णहिं मणामाहिं ओरालाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धन्नाहिं मङ्गलाहिं सस्सिरीयाहिं मियमहुरमञ्जुलाहिं गिराहिं संलवमाणी पडिबोहेइ, पडिबोहित्ता बलेणं रन्ना अब्भणुनाया समाणी नाणामणिरयणभत्तिचित्तंसि भद्दासणंसि निसीयइ, निसीयित्ता आसत्था वीसत्था सुहासणवरगया बलं रायं ताहिं इट्ठाहिं कन्ताहिं जाव संलवमाणी संलवमाणी एवं वयासी -
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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