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________________ १०८] [ वह्निदशा ___उसी द्वारका नगरी में बलदेव नामक राजा (श्रीकृष्ण वासुदेव के ज्येष्ठ भ्राता) थे। वे महान् थे यावत् राज्य का प्रशासन करते हुए रहते थे। उन बलदेव राजा की रेवती नाम की देवी-पत्नी थी, जो सुकुमाल थी यावत् भोगोपभोग भोगती हुई विचरण करती थी। . किसी समय रेवती देवी ने अपने शयनागार में औपपातिक सूत्र में वर्णित विशिष्ट प्रकार की शय्या पर सोते हुए यावत् स्वप्न में सिंह को देखा। स्वप्न देखकर वह जागृत हुई। यहाँ स्वप्नदर्शन आदि का कथन करना चाहिये। अर्थात् स्वप्न देखकर वह अपने पति के पास गई। उन्हें स्वप्न देखने का वत्तान्त कहा। पति बलदेव ने स्वप्न के फल का निर्देश दिया। प्रात:काल स्वप्नपाठकों को आमन्त्रित किया गया। उन्होंने स्वप्नफल कथन की पुष्टि की। यथासमय बालक का जन्म हुआ। वह जब आठ वर्ष का हो गया तो महाबल के समान उसने बेहत्तर कलाओं का अध्ययन किया। विवाह के समय उसे पचास वस्तुएँ दहेज में दी गईं। एक ही दिन पचास उत्तम राजकन्याओं के साथ पाणिग्रहण हुआ इत्यादि। विशेषता यह है कि उस बालक का नाम निषध था यावत् वह आमोद-प्रमोद के साथ प्रासाद में रहकर आनन्दपूर्वक समय व्यतीत करने लगा। अर्हत् अरिष्टनेमि का आगमन ___९. तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिट्ठनेमी आइगरे दस धणूई ... वण्णओ जाव समोसरिए। परिसा निग्गया। ___ तए णं से कण्हे वासुदेवे इमीसे कहाए लद्धढे समाणे हट्ठतुढे कोडुम्बियपुरिसे सद्दावेइ सहावित्ता एवं वयासी - "ख्यिामेव भो देवाणुप्पिया, सभाए सुहम्माए सामुदाणियं भेरि तालेहि।' तए णं से कोडुम्बियपुरिसे जाव पडिसुणित्ता जेणेव सभाए सुहम्माए सामुदाणिया भेरी, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सामुदाणियं भेरि महया महया सद्देणं तालेइ। ९. उस काल और उस समय में अर्हत् अरिष्टनेमि प्रभु पधारे। वे धर्म की आदि करने वाले थे, इत्यादि वर्णन भगवान् महावीर के वर्णन के समान यहाँ करना चाहिये। विशेषता यह है कि अर्हत् अरिष्टनेमि दस धनुष की अवगाहना - शरीर की ऊँचाई वाले थे। धर्मदेशना श्रवण करने के लिये परिषद् निकली। ___ तत्पश्चात् कृष्ण वासुदेव ने यह संवाद सुनकर हर्षित एवं संतुष्ट होकर कौटुम्बिक पुरुषों (सेवकों) को बुलाया और बुलाकर उनसे इस प्रकार कहा – देवानुप्रियो! शीघ्र ही सुधर्मा सभा में जाकर सामुदानिक (जिसके बजने पर जनसमूह एकत्रित हो जाए, ऐसी) भेरी को बजाओ। ___तब वे कौटुम्बिक पुरुष यावत् कृष्ण वासुदेव की आज्ञा स्वीकार करके जहाँ सुधर्मा सभा में सामुदानिक भेरी थी वहाँ आए और आकर उस सामुदानिक भेरी को जोर से बजाया। कृष्ण वासुदेव का दर्शनार्थ गमन १०. तए णं तीसे सामुदाणियाए भेरीए महया महया सद्देण तालियाए समाणीए समद्दविजय
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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