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________________ ९८ ] [ पुष्पचूलिका राया। तत्थ णं रायगिहे नयरे सुदंसणो नामं गाहावई परिवसइ, अड्ढे। तस्स णं सुदंसणस्स गाहावइस्स पिया नामं भारिया होत्था सोमाला। तस्स णं सुदंसणस्स गाहावइस्स धूया पियाए गाहावयणीए अत्तया भूया नामं दारिया होत्था, बुड्डा बुड्ढकुमारी जुण्णा जुण्णकुमारी पडियपुयत्थणी वरगपरिवज्जिया यावि होत्था। ५. हे जम्बू! उस काल और उस समय में राजगृह नाम का नगर था। गुणशिलक नाम का चैत्य था। वहाँ श्रेणिक राजा राज्य करता था। श्रमण भगवान् महावीर स्वामी वहाँ पधारे। धर्मदेशना श्रवण करने के लिये परिषद् निकली। उस काल और उस समय श्री देवी सौधर्मकल्प में श्री अवतंसक नामक विमान की सुधर्मा सभा में बहुपुत्रिका देवी के समान चार हजार सामानिक देवियों एवं चार महत्तरिकाओं के साथ श्रीसिंहासन पर बैठी हुई थी (उसने अवधिज्ञान से भगवान् को राजगृह में समवसृत देखा। भक्तिवश वह वहाँ आई और) यावत् नृत्य-विधि को प्रदर्शित कर वापिस लौट गई। यहाँ इतना विशेष है कि श्रीदेवी ने अपनी नृत्यविधि में बालिकाओं की विकुर्वणा नहीं की थी। श्री देवी के वापिस लौट जाने पर गौतम स्वामी ने भगवान् से उसके पूर्व भव के विषय में पूछा। भगवान् ने उत्तर दिया - ___ हे गौतम! उस काल और उस समय में राजगृह नाम का नगर था। गुणशिलक नाम का चैत्य था, वहां के राजा का नाम जितशत्रु था। उस राजगृह नगर में धनाढ्य सुदर्शन नाम का गाथापति निवास करता था। उस सुदर्शन गाथापति (सद्गृहस्थ) की सुकोमल अंगोपांग, सुन्दर शरीर वाली आदि विशेषणों से विशिष्ट प्रिया नाम की भार्या थी। उस सुदर्शन गाथापति की पुत्री, प्रिया गाथापत्नी की आत्मजा भूता नाम की दारिका-लड़की थी। जो वृद्ध शरीरा और वृद्ध कुमारी, जीर्ण शरीर वाली और जीर्ण कुमारी, शिथिल नितम्ब और स्तनवाली तथा वरविहीन थी। भूता का दर्शनार्थ गमन ६. तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए (जाव) नवरयणीए। वण्णओ सोच्चेव। समोसरणं परिसा निग्गया। तए णं सा भूया दारिया इमीसे कहाए लद्धाट्ठा समाणी हतुवा जेणेव अम्मापियरो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी – “एवं खलु, अम्मताओ! पासे अरहा पुरिसादाणीए पुव्वणुपुव्विं चरमाणे (जाव) गणपरिवुडे विहरइ। तं इच्छामि णं अम्मताओ, तुब्भेहिं अब्भणुन्नाया समाणी पासस्स अरहओ पुरिसादाणीयस्स पायवन्दिया गमित्तए।' 'अहासुहं - देवाणुप्पिए, मा पडिबन्धं ..।' तए णं सा भूया दारिया बहाया (जाव) सरीरा चेडीचक्कवालपरिकिण्णा साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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