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________________ पुप्फचूलियाओ : पुष्पचूलिका प्रथम अध्ययन १. उक्खेवओ - जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव संपत्तेणं उवङ्गाणं तच्चस्स पुफियाणं अयमढे पन्नत्ते, चउत्थस्स णं भंते! वग्गस्स उवङ्गाणं पुष्फचूलियाणं के अढे पन्नत्ते ? १. जम्बू स्वामी ने श्री सुधर्मा स्वामी से प्रश्न किया - हे भदन्त! यदि मोक्षप्राप्त यावत् श्रमण भगवान् महावीर ने पुष्पिका नामक तृतीय उपांग का यह (पूर्वोक्त) अर्थ प्रतिपादित किया है तो पुष्पचूलिका नामक चतुर्थ उपांग का क्या अर्थ - आशय कहा है ? २. एवं खलु जम्बू! समणेणं जाव संपत्तेणं उवङ्गाणं चउत्थस्स णं पुष्फचूलियाणं दस अज्झयणा पन्नत्ता, तं जहा - सिरि-हिरि-धिइ-कित्तीओ, बुद्धी-लच्छी य होइ बोद्धव्वा। इलादेवी सुरादेवी रसदेवी गंधदेवी य। २. सुधर्मा स्वामी ने उत्तर दिया - हे आयुष्मन् जम्बू! श्रमण यावत् मोक्षप्राप्त भगवान् महावीर ने चतुर्थ उपांग पुष्पचूलिका के दस अध्ययन प्रतिपादित किए हैं, वे इस प्रकार हैं - १ श्रीदेवी २ ह्री देवी ३ धृति देवी ४ कीर्ति देवी ५ बुद्धि देवी ६ लक्ष्मी देवी ७ इला देवी ८ सुरा देवी ९ रस देवी १० गन्ध देवी। ३. जइ णं भन्ते! समणेणं भगवया जाव संपत्तेणं उवङ्गाणं चउत्थस्स वग्गस्स पुप्फचूलियाणं दस अज्झयणा पत्नत्ता, पढमस्स णं भन्ते! समणेणं जाव संपत्तेणं के अढे पन्नत्ते ? ३. हे भदन्त! यदि मुक्तिप्राप्त श्रमण भगवान् महावीर ने पुष्पचूलिका नामक चतुर्थ उपांग के दस अध्ययन प्रतिपादित किए हैं तो हे भगवन्! श्रमण यावत् मोक्षप्राप्त भगवान् महावीर ने प्रथम अध्ययन का क्या आशय बताया है ? ४. तए णं से सुहम्मे जम्बू अणगारं एवं वयासी - इसके उत्तर में आर्य सुधर्मा स्वामी ने अपने शिष्य श्री जम्बू अनगार से इस प्रकार कहा ५. एवं खलु जम्बू! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे, गुणसिलए चेइए, सेणिए राया। सामी समोसढे, परिसा निग्गया। तेणं कालेणं तेणं समएणं सिरिदेवी सोहम्मे कप्पे सिरिवडिंसए विमाणे सभाए सुहम्माए सिरिसि सीहासणंसि चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं चउहिं महत्तरियाहिं, जहा बहुपुत्तिया, (जाव) नट्टविहिं उवदंसित्ता पडिगया। नवरं दारियाओ नत्थि। पुव्वभवपुच्छा। . एवं खलु गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समयेणं रायगिहे नयरे, गुणसिलए चेइए, जियसत्तू
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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