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________________ ७० ] [ पुष्पिका जघन्य अवगाहना से शुक्रमहाग्रह देव के रूप में जन्म लिया। तत्पश्चात् वह शुक्रमहाग्रह देव तत्काल उत्पन्न होकर यावत् भाषा-मनःपर्याप्ति आदि पांचों पर्याप्तियों से पर्याप्त भाव को प्राप्त हुआ। २६. एवं खलु गोयमा! सुक्केणं सा दिव्वा (जाव) अभिसमन्नागए। एगं पलिओवमं ठिई। - 'सुक्के णं भंते! महग्गहे तओ देवलोगाओ आउक्खएण भवक्खएणं ठिइक्खएणं कहिं गच्छिहिइ ?' 'गोयमा! महाविदेहे वासे सिज्झिहिए।' २६. अन्त में अपने कथन का उपसंहार करते हुए भगवान् महावीर स्वामी ने कहा – हे गौतम! इस प्रकार से उस शुक्रमहाग्रह देव ने वह दिव्य देवऋद्धि, द्युति यावत् दिव्य प्रभाव प्राप्त किया है। उसकी वहाँ एक पल्योपम की स्थिति है। गौतम स्वामी ने पुनः पूछा – भदन्त! वह शुक्रमहाग्रह देव आयु, भव और स्थिति का क्षय होने के अनन्तर उस देवलोक से च्यवन कर कहां जायेगा ? (कहां उत्पन्न होगा ?) भगवान् ने कहा – गौतम! वह शुक्रमहाग्रह देव आयुक्षय भवक्षय और स्थितिक्षय के अनन्तर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा, (यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेगा)। २७. निक्खेवओ-तं एवं खलु जम्बू!समणेणंजाव संपत्तेणं पुफियाणं तच्चस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते त्ति बेमि। २७. सुधर्मा स्वामी ने तीसरे अध्ययन का आशय कहने के बाद जम्बू स्वामी ने कहा – आयुष्मन् जम्बू! इस प्रकार श्रमण यावत् मुक्तिप्राप्त महावीर ने पुष्पिका के तृतीय अध्ययन में इस भाव का निरूपण किया है, ऐसा मैं कहता हूँ। ॥ तृतीय अध्ययन समाप्त॥
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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