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________________ ६० ] [ पुष्पिका रात्रि के प्रभात रूप में परिवर्तित हो जाने पर, जब कमल विकसित हो जाएँ, प्रभात पाण्डुर-श्वेत वर्ण (सुनहरा सफेद रंग) का हो जाए, लाल अशोक, पलाशपुष्प, तोते की चोंच, चिरमी के अर्धभाग, बंधुजीवकपुष्प, कबूतर के पैर, कोयल के नेत्र जसद के पुष्प, जाज्वल्यमान अग्नि, स्वर्ण कलश एवं हिंगलकसमूह की लालिमा से भी अधिक रक्तिम श्री से सुशोभित सूर्य उदित हो जाए और उसकी किरणों के फैलने से अंधकार विनष्ट हो जाए, सूर्य रूपी कुंकुम से विश्व व्याप्त हो जाए, नेत्रों के विषय का प्रचार होने से विकसित होने वाला लोक स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगे, सरोवरों में स्थित कमलों के वन को विकसित करने वाला सहस्र किरणों से युक्त दिवाकर जाज्वल्यमान तेज से प्रकाशित हो जाये, तब वाराणसी नगरी के बाहर बहुत से आम्र-उद्यान (आम के बगीचे) लगवाऊँ, इसी प्रकार से मातुलिंग – बिजौरा – बिल्व – बेल, कविट्ठ - कैथ, चिंचा - इमली और फूलों की वाटिकाएँ लगवाऊँ।' उसने इस प्रकार विचार किया और विचार करके आगामी दिन यावत् जाज्वल्यमान तेज सहित सूर्य के प्रकाशित होने पर वाराणसी नगरी के बाहर बहुत से आम के बगीचे यावत् पुष्पोद्यान लगवाए। ___ तत्पश्चात् वे बहुत से आम के बगीचे यावत् फूलों के बगीचे अनुक्रम से संरक्षण, संगोपन - लालन-पालन और संवर्धन किये जाने से दर्शनीय बगीचे बन गये। कृष्णवर्ण - श्यामल ,श्यामल आभा वाले यावत् रमणीय महामेघों के समूह के सदृश होकर पत्र, पुष्प, फल एवं अपनी हरी-भरी श्री से अतीव-अतीव शोभायमान हो गये। १६. तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि कुडुम्बजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए (जाव) समुप्पजित्था – ‘एवं खलु अहं वाणारसीए नयरीए सोमिले नामं माहणे अच्चन्तमाहणकुलप्पसूए। तए णं मए वयाई चिण्णाइं (जाव) जूवा निक्खित्ता। तए णं मए वाणारसीए नयरीए बहिया बहवे अम्बारामा जाव पुण्फारामा य रोवाविया। तं सेय खलु मए इयाणिं कल्लं (जाव) जलन्ते सुबहुं लोहकडाहकडुच्छुयं तम्बियं तावसभण्डं घडावेत्ता विउलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता- मित्तनाइनियगसंबंधिपरिजणं आमन्तेत्ता तं मित्तनाइनियगसंबंधिपरिजणं विउलेणं असणपाणखाइमसाइमेणं वत्थगन्धमल्लालंकारेण यसक्कारेत्ता सम्माणेत्ता तस्सेव मित्तनाइनियगसंबंधिपरिजणस्स पुरओ जेट्ठपुत्तं ठवित्ता तं मित्तनाइनियगसंबंधिपरिजणं जेट्टपुत्त च आपुच्छित्ता सुबहुं लोहकडाहकडुच्छुयं तम्बियं तावसभण्डगं गहाय जे इमे गङ्गाकूला वाणपत्था तावसा भवन्ति, तं जहा - होत्तिया पोत्तिया कोत्तिया जन्नई सड्ढई थालई हुम्बउट्ठा दन्तुक्खलिया उम्मजगा संमज्जगा निमज्जगा संपक्खालगा दक्खिणकूला उत्तरकूला संखधमा कूलधमा मियलुद्धया हत्थितावसा उद्दण्डा दिसापोक्खिणो वक्कवासिणो बिलवासिणो जलवासिणो रुक्खमूलिया अम्बुभक्खिणो वायुभक्खिणो सेवालभक्खिणो मूलाहारा कन्दाहारा तयाहारा पत्ताहारा पुष्पहारा फलाहारा बीयाहारा परिसडियकन्दमूलतय-पत्तपुष्फफलाहारा जलाभिसेयकढिणगायभूया आयावणाहिं पञ्चग्गितावेहिं इङ्गालसोल्लियं कन्दुसोल्लियं पिव अप्पाणं करेमाणा विहरन्ति। तत्थ णं जे ते दिसापोक्खिया तावसा तेसिं अन्तिए दिसापोक्खियत्ताए पव्वइत्तए, पव्वइए वि य णं समाणे इमं एयारूवं अधिग्गहं अभिगिहिस्सामि – कप्पइ मे जावज्जीवाए छठेंछट्टेणं
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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