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________________ वर्ग ३ : तृतीय अध्ययन ] [ ५९ करके वापिस लौट गया। इसके बाद किसी एक दिन पार्श्व अर्हत् वाराणसी नगरी और आम्रशाल वन चैत्य से बाहर निकले। निकलकर जनपदों में विहार करने लगे। तदनन्तर वह सोमिल ब्राह्मण किसी समय असाधु दर्शन - महाव्रतधारी साधुओं का दर्शन न करने के कारण एवं निर्ग्रन्थ श्रमणों की पर्युपासना नहीं करने से - उनके उपदेश श्रवण का संयोग न मिलने से एवं मिथ्यात्व पर्यायों के प्रवर्धमान होने (बढ़ने) से तथा सम्यक्त्व पर्यायों के परिहीयमान होने (घटने से) मिथ्यात्व भाव को प्राप्त (मिथ्यादृष्टि, श्रद्धाविहीन) हो गया। सेमिल का गृहत्याग का विचार १५. तए णं तस्स सोमिलस्स माहणस्स अन्नया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसिकुडुम्बजागरियं जागरमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए (जाव) समुप्पजित्था – ‘एवं खलु अहं वाणारसीए नयरीए सेमिले नामं माहणे अच्चन्तमाहणकुलप्पसूए। तए णं मए वयाई चिण्णइं, वेया य अहीया, दारा आहूया, पुत्ता जणिया, इड्डीओ समाणीयाओ, पसुबन्धा' कया, जन्ना जेट्ठा, दक्खिणा दिन्ना, अतिही पूइया, अग्गी हूया, जूवा निक्खित्ता। तं सेयं खलु ममं इयाणिं कल्लं (जाव) पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमलकोमलुम्मिलियंमि अहापण्डुरे पभाए रत्तासोगपगासकिं सुयसुयमुहगुञ्जद्धरागबन्धुजीवगपारावयचलण-नयणपरहुयसुरत्त लोयण-जासुमिणकुसुम-जलियजलणतवणिजकलस-हिङ्गुलयनिगररूवाइरेगरेहन्तसस्सिरीए दिवायरे अहक्कमेण उदिए तस्स दिणकरकरपरंपरावयापारलुमि अन्धयारे बालातवकुंकु मेण खइयव्व जीवलोए लोयणविसआणुआसविगसन्तविसददंसियंमि लोए, कमलागरसण्डवोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरास्सिमि दिणयरे तेयसा जलन्ते वाणारसीए नयरीए बहिया बहवे अम्बारामा रोवावित्तए एवं माउलिङ्गा बिल्ला कविट्ठा चिञ्चा पुप्फारामा रोवावित्ताए' एवं संपेहेइ, २ त्ता कल्लं (जाव) जलन्ते वाणारसीए नयरीए बहिया अम्बारामे जाव पुष्फारामे य रोवावेइ। तए णं बहवे अम्बरामा य जाव पुण्फारामा य अध्सुपुव्वेणं सारक्खिज्जमाणा संगोविजमाणा संवड्ढिज्जमाणा आरामा जाया किण्हा किण्होभासा (जाव) रम्मा महामेह-निकुरम्बभूया पत्तिया पुफिया फलिया हरियगरेरिजमाणा सिरीए अईव २ उवसोभेमाणा २ चिट्ठन्ति। १५. इसके बाद किसी एक समय मध्यरात्रि में अपनी कौटम्बिक स्थिति पर विचार करते हये उस सोमिल ब्राह्मण को यह और इस प्रकार का आन्तरिक यावत् मानसिक संकल्प उत्पन्न हुआ - मैं वाराणसी नगरी का रहने वाला और अत्यन्त शुद्ध ब्राह्मण कुल में उत्पन्न हुआ हूँ। मैंने व्रतों (कुलागत विधि-विधानों) को अंगीकार किया, वेदाध्ययन किया, पत्नी को लाया – विवाह किया, कुल परंपरा की वृद्धि के लिये पुत्रादि सन्तान को जन्म दिया, समृद्धियों का संग्रह किया - अर्थोपार्जन किया, पशुबंध किया - गाय, भैसों का पालन किया, यज्ञ किये, दक्षिणा दी, अतिथिपूजा – सत्कार किया, अग्नि में हवन किया – आहुति दी, यूप स्थापित किये, इत्यादि गृहस्थ संबंधी कार्य किये। लेकिन अब मुझे यह उचित है कि कल (आगामी दिन) १. पाठान्तर - 'पसुवधा'। - मुनि श्री घासीलालजी
SR No.003461
Book TitleAgam 19 Upang 08 Niryavalika Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages180
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_nirayavalika, agam_kalpavatansika, agam_pushpika, agam_pushpachulika, & agam_vrushnidasha
File Size4 MB
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