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________________ प्रथम वक्षस्कार] [२७ विजयस्स अविसेसियं। [२३] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत उत्तरार्ध भरतक्षेत्र में ऋषभकूट नामक पर्वत कहाँ है ? गौतम! हिमवान् पर्वत के जिस स्थान से गंगा महानदी निकलती है, उसके पश्चिम में, जिस स्थान से सिन्धु महानदी निकलती है, उसके पूर्व में, चुल्लहिमवंत वर्षधर पर्वत के दक्षिणी नितम्ब-मेखलासन्निकटस्थ प्रदेश में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत उत्तरार्ध भरतक्षेत्र में ऋषभकूट नामक पर्वत है। वह आठ योजन ऊँचा, दो योजन गहरा, मूल में आठ योजन चौड़ा, बीच में छह योजन चौड़ा तथा ऊपर चार योजन चौड़ा है। मूल में कुछ अधिक पच्चीस योजन परिधियुक्त, मध्य में कुछ अधिक अठारह योजन परिधियुक्त तथा ऊपर कुछ अधिक बारह योजन परिधि युक्त है। मूल में विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त-संकडा तथा ऊपर तनुकपतला है। वह गोपुच्छ-संस्थान-संस्थित-आकार में गाय की पूँछ जैसा है, सम्पूर्णतः जम्बूनद-स्वर्णमयजम्बूनद जातीय स्वर्ण से निर्मित है, स्वच्छ सुकोमल एवं सुन्दर है। वह एक पद्मवरवेदिका (तथा एक वनखण्ड द्वारा चारों ओर से परिवेष्टित है। ऋषभकूट के ऊपर एक बहुत समतल रमणीय भूमिभाग है। वह मुरज के ऊपरी भाग जैसा समतल है। वहाँ वाणव्यन्तर देव और देवियाँ विहार करते हैं। उस बहुत समतल तथा रमणीय भूमिभाग के ठीक बीच में एक विशाल भवन है)। वह भवन एक कोस लम्बा, आधा कोस चौड़ा, कुछ कम एक कोस ऊँचा है। भवन का वर्णन वैसा ही जानना चाहिए जैसा अन्यत्र किया गया है। वहाँ उत्पल, पद्म (सहस्रपत्र, शत-सहस्रपत्र आदि हैं)।ऋषभकूट के अनुरूप उनकी अपनी प्रभा है, उनके वर्ण हैं । वहाँ पर समृद्धिशाली ऋषभ नामक देव का निवास है, उसकी राजधानी है, जिसका वर्णन सामान्यतया मन्दर पर्वत गत विजय-राजधानी जैसा समझना चाहिए।
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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