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________________ [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र (अपने पूर्वी किनारे से पूर्वी लवणसमुद्र का स्पर्श किये हुए है तथा पश्चिमी किनारे से पश्चिमी लवणसमुद्र का स्पर्श किये हुए है)। इसकी लम्बाई कुछ कम १४४७१३/,, योजन है। २६ ] उसकी धनुष्य-पीठिका दक्षिण में १४५२८१९ / योजन है । यह प्रतिपादन परिक्षेप-परिधि की अपेक्षा १९ से है। भगवन् ! उत्तरार्ध भरतक्षेत्र का आकार - स्वरूप कैसा है ? गौतम! उसका भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय है । वह मुरज या ढोलक के ऊपरी भाग जैसा समतल है, कृत्रिम तथा अकृत्रिम मणिायों से सुशोभित है । भगवन्! उत्तरार्ध भरत में मनुष्यों का आकार - स्वरूप कैसा है ? गौतम! उत्तरार्ध भरत में मनुष्यों का संहनन, (संस्थान, ऊँचाई, आयुष्य बहुत प्रकार का है। वे बहुत वर्षों का आयुष्य भोगते हैं। आयुष्य भोगकर कई नरकगति में, कई तिर्यंचगति में कई मनुष्यगति में, कई देवगति में जाते हैं, कई) सिद्ध, (बुद्ध, मुक्त, परिनिर्वृत्त) होते हैं, समस्त दुःखों का अन्त करते हैं । ऋषभकूट २३. कहि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे उत्तरडभरहे बासे उसभकूडे णामं पव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! गंगाकुंडस्स पच्चत्थिमेणं, सिंधुकुंडस्स पुरत्थिमेणं, चुल्लहिमवंतस्स वासहरपव्वयस्स दाहिणिल्ले णितंबे, एत्थ णं जंबुद्दीवे दीवे उत्तरड्डभरहे वासे उसहकूडे णामं पव्वए पण्णत्ते- अट्ठ जोअणाई उड्डुं उच्चत्तेणं, दो जोअणाइं उव्वेहेणं, मूले अट्ठ जोअणाई विक्खंभेणं, मझे छ जोअणाई विक्खंभेणं, उवरिं चत्तारि जोअणाइं विक्खंभेणं, मूले साइरेगाई पणवीसं जोअणाई परिक्खेत्रेणं, मज्झे साइरेगाइं अट्ठारस जोअणाइं परिक्खेवेणं, उवरि साइरेगाई दुवालस जोअणाई परिक्खेवेणं ।' मूले वित्थिण्णे, मज्झे संक्खित्ते, उप्पिं तणुए, गोपुच्छसंठाणसंठिए, सव्वजंबूणयामए, अच्छे, सहे जाव' पडिरूवे । से गाए पमवरवेइआए तहेव (एगेण य वणसंडेण सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते । उसहकूडस्स णं उप्पिं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्ते । से जहाणामए आलिंगपुक्खरे वा जाव वाणमंतरा जाव विहरंति । तस्स णं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभागे महं एगे भवणे पण्णत्ते) कोसं आयामेणं, अद्धकोसं विक्खंभेणं, देसऊणं कोसं उड्डुं उच्चत्तेणं, अट्टो तहेव, उप्पलाणि, पउमाणि (सहस्सपत्ताइं, सयसहस्सपत्ताइं-उसहकूडप्पभाई, उसहकूडवण्णाइं ) । उसभे अ एत्थ देवे महिड्डीए जाव े दाहिणेणं रायहाणी तहेव मंदरस्स पव्वयस्स जहा १. पाठान्तरम् - मूले बारस जोअणाइं विक्खंभेणं, मज्झे अट्ठ जोअणाई विक्खंभेणं, उप्पिं चत्तारि जोअणाई विक्खंभेणं, मूले साइरेगाई सत्ततीसं जोअणाई परिक्खेवेणं, मज्झे साइरेगाइं पणवीसं जोअणाइं परिक्खेवेणं, उप्पिं साइरेगाई बारस जोअणाई परिक्खेवेणं । २. देखें सूत्र संख्या ४ ३. देखें सूत्र संख्या १४
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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