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________________ ४१६] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! जम्बुद्दीवे णं दीवे तत्थ २ देसे तहिं २ बहवे जम्बू-रुक्खा , जम्बू-वणा, जम्बूवणसंडा, णिच्चं कुसुमिआ(णिच्चं माइआ, णिच्चं लवइआ, णिच्चं थवइआ,णिच्चं गुलइआ, णिच्चं गोच्छिआ, णिच्चं जमलिआ, णिच्चं जुवलिया, णिच्चं विणमिआ, णिच्चं पणमिआ, णिच्चं कुसुमिआ-माइअ-लवइअ-थवइअ-गुलइअ-गोच्छिअ-जमलिअ-जुवलिअ-विणमिअपणमिअ-सुविभत्त-) पिंडिम-मंजरि वडेंसगधरा सिरीए अईव उवोसभेमाणा चिटुंति। __जम्बूए सुदंसणाए अणाढिए णामंदेवे महिड्डिए जाव पलिओवमट्ठिइए पविसइ।से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ जम्बूद्दीवे दीवे इति। [२१२] भगवन् ! जम्बूद्वीप जम्बूद्वीप क्यों कहलाता है ? गौतम ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में स्थान-स्थान पर बहुत से जम्बू वृक्ष हैं, जम्बू वृक्षों से आपूर्ण वन हैं, वनखण्ड हैं-जहाँ प्रमुखतया जम्बू वृक्ष हैं, कुछ और भी तरु मिले जुले हैं। वहाँ वनों तथा वन-खण्डों में वृक्ष सदा-सब ऋतुओं में फूलों से लदे रहते है। (वे मंजरियों, पत्ते फूलों के गुच्छों, गुल्मों-लताकुंजों तथा पत्तों के गुच्छों से युक्त रहते हैं। कई ऐसे हैं, जो सदा समश्रेणिक रूप में एक पंक्ति में स्थित हैं। कई ऐसे हैं जो सदा युगल रूप में-दो-दो के रूप में विद्यमान हैं। कई ऐसे हैं, जो पुष्पों एवं फलों के भार से नित्य विनमित-बहुत झुके हुए हैं, प्रणमित-विशेष, रूप से अभिनमित-नमे हुए हैं। कई ऐसे हैं, जो ये सभी विशेषताएँ लिये हैं।) वे अपनी सुन्दर लुम्बियों तथा मञ्जरियों के रूप में मानो शिरोभूषणकलंगियाँ धारण किये रहते हैं। वे अपनी श्री-कान्ति द्वारा अत्यन्त शोभित होते हुए स्थित हैं। जम्बू सुदर्शना पर परम ऋद्धिशाली, पल्योपम-आयुष्ययुक्त अनाहत नामक देव निवास करता है। ... गौतम ! इसी कारण वह (द्वीप) जम्बूद्वीप कहा जाता है। उपसंहार : समापन . २१३. तए णं समणे भगवं महावीरे मिहिलाए णयरीए माणिभद्दे चेइए बहूणं समणाणं, बहूणं समणीणं, बहूणं सावयाणं, बहूणं सावियाणं, बहूणं देवाणं, बहूणं देवीणं, मझगए एवमाइक्खइ, एवं भासइ, एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइ जम्बूदीवपण्णत्तीणामत्ति अज्जो !अज्झयणे अटुं च हेउं च पसिणं च कारणं च वागरणं च भुज्जो २ उवदंसेइ त्ति बेमि। ॥जंबूद्दीवपण्णत्ती समत्ता॥ । [२१३] सुधर्मा स्वामी ने अपने अन्तेवासी जम्बू को सम्बोधिक कर कहा-आर्य जम्बू ! मिथिला गरी के अन्तर्गत मणिभद्र चैत्य में बहुत-से श्रमणों, बहुत-सी श्रमणियों, बहुत-से श्रावको, बहुत-सी चाविकाओं, बहुत-से देवों, बहुत-सी देवियों की परिषद् के बीच श्रमण भगवान् महावीर ने शस्त्रपरिज्ञादि को ज्यों श्रुतस्कन्धादि के अन्तर्गत जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति नामक स्वतन्त्र अध्ययन का आख्यान किया-वाच्यमात्रकथन पूर्वक वर्णन किया, भाषण किया-विशेष-वचन-कथन पूर्वक प्रतिपादन किया-व्यक्त पर्याय-वचन गरा निरूपण किया, प्ररूपण किया-उपपत्ति या युक्तिपूर्वक व्याख्यान किया। विस्मरणशील श्रोतृवृन्द पर
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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