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सप्तम वक्षस्कार]
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गोयमा ! स्यात्-कथंचित् शाश्वत् है, स्यात्-कथंचित् अशाश्वत है. भगवन् ! वह स्यात् शाश्वत है, स्यात् अशाश्वत है-ऐसा क्यों कहा जाता है ?
गौतम ! द्रव्य रूप से-द्रव्यार्थिकनय की अपेक्षा से वह शाश्वत है, वर्णपर्याय, गन्धपर्याय, रसपर्याय एवं स्पर्शपर्याय की दृष्टि से-पर्यायार्थिक नय की अपेक्षा से वह अशाश्वत है।
गौतम ! इसी कारण कहा जाता है-वह स्यात् शाश्वत है, स्यात् अशाश्वत है। भगवन् ! जम्बूद्वीप काल की दृष्टि से कब तक रहता है।
गौतम ! यह कभी-भूतकाल में नहीं था, कभी-वर्तमान काल में नहीं हैं, कभी-भविष्यकाल में नहीं होगा-ऐसी बात नहीं है। यह भूतकाल में था, वर्तमान काल में है और भविष्यकाल मे रहेगा।
जम्बूद्वीप ध्रुव, नियत, शाश्वत, अव्यय, अवस्थित तथा नित्य कहा गया है। जम्बूद्वीप का स्वरूप
____२११. जम्बुद्दीवेणंभंते ! दीवेकिंपुढवि-परिणामे,आउ-परिणामे, जीव-परिणामे, पोग्गलपरिणामे ?
गोयमा ! पुढवि-परिणामेवि,आउ-परिणामेवि, जीव-परिणामेवि, पोग्गल-परिणामेवि।
जम्बुद्दीवे णं भंते ! दीवे सव्व-पाणा, सव्व-जीवा, सव्व-भूआ, सव्व-सत्ता, पुढविकाइअत्ताए, आउकाइअत्ताए, तेउकाइअत्ताए, वाउकाइअत्ताए, वणस्सइकाइअत्ताए उववण्णपुव्वा।
हंता गोयमा ! असई अहवा अणंतखुत्तो।
[२११] भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप पृथ्वी-परिणाम-पृथ्वीपिण्डमय है, क्या अप्-परिणामजलपिण्डमय है, क्या जीव-परिणाम-जीवमय है, क्या पुद्गलपरिणाम-पुद्गल-स्कन्धमय है ?
गौतम ! पर्वतादियुक्त होने से पृथ्वीपिण्डमय भी है, नदी, झील आदि युक्त होने से जलपिण्डमय भी है, वनस्पति आदि युक्त होने से जीवमय भी है, मूर्त होने से पुद्गलपिण्डमय भी है।
भगवन् ! क्या जम्बूद्वीप में सर्वप्राण-द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय तथा चतुरिन्द्रिय जीव, सर्वजीव-पञ्चेन्द्रिय जीव, सर्वभूत-वृक्ष (वनस्पति जीव), सर्वसत्त्व-पृथ्वी, जल, अग्नि तथा वायु के जीव-ये सब पृथ्वीकायिक के रूप में, अप्कायिक के रूप में, तेजस्कायिक के रूप में, वायुकायिक के रूप में तथा वनस्पतिकायिक के रूप में पूर्वकाल में उत्पन्न हुए है ?
गौतम ! हाँ, गौतम ! वे असंकृत-अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हुए हैं। जम्बूद्वीप : नाम का कारण
२१२. से केणदेणं भंते ! एवं वुच्चइ जम्बुद्दीवे दीवे ?