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________________ ३८० ] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! तितारे पण्णत्ते । एवं णेअव्वा जस्स जइआओ ताराओ, इमं च तं तारग्गं तिगतिगपंचगसयदुग-दुगबत्तीसगतिगं तह तिगं च । छप्पंचगतिगएक्कगपंचगतिग-छक्कगं चेव ॥ १ ॥ सत्तगदुगदुग-पंचग-एक्केक्कग-पंच- चउतिगं चेव । एक्कारसग - चउक्कं चउक्कगं चेव तारग्गं ॥२॥ १९१. भगवन् ! इन अट्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित् नक्षत्र के कितने तारे बतलाये गये हैं ? गौतम ! अभिजित् नक्षत्र के तीन तारे बतलाये गये हैं । जिन नक्षत्रों के जितने जितने तारे हैं, वे प्रथम से अन्तिम तक इस प्रकार हैं १. अभिजित् नक्षत्र के तीन तारे, २. श्रवण नक्षत्र के तीन तारे, ३. धनिष्ठा नक्षत्र के पांच तारे, ४. शतभिषक् नक्षत्र के सौ तारे, ५. पूर्वभाद्रपदा नक्षत्र के दो तारे, ६. उत्तरभाद्रपदा नक्षत्र के दो तारे, ७. रेवती नक्षत्र के बत्तीस तारे, ८. अश्विनी नक्षत्रके तीन तारे, ९. भरणी नक्षत्र के तीन तारे, १०. कृत्तिका नक्षत्र के छ: तारे, ११. रोहिणी नक्षत्र के पांच तारे, १२. मृगशिर नक्षत्र के तीन तारे, १३. आर्द्रा नक्षत्र का एक तारा, १४. पुनर्वसु नक्षत्र के पांच तारे, १५. पुष्य नक्षत्र के तीन तारे, १६. अश्लेषा नक्षत्र छ: तारे, १७. मघा नक्षत्र के सात तारे, १८. पूर्वफाल्गुनी नक्षत्र के दो तारे, १९. उत्तरफाल्गुनी नक्षत्र के दो तारे, २०. हस्त नक्षत्र के पांच तारे, २१. चित्रा नक्षत्र का एक तारा, २२. स्वाति नक्षत्र का एक तारा, २३. विशाखा नक्षत्र के पांच तारे, २४. अनुराधा नक्षत्र के पांच तारे, २५. ज्येष्ठा नक्षत्र के तीन तारे, २६. मूल नक्षत्र के ग्यारह तारे, २७. पूर्वाषाढा नक्षत्र के चार तारे तथा २८. उत्तराषाढा नक्षत्र के चार तारे हैं । नक्षत्रों के गोत्र एवं संस्थान १९२. एतेसि णं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभिई णक्खत्ते किंगोत्ते ? गोयमा ! मोग्गलायणसगोत्ते, गाहा मोग्गल्लायण १ संखायणे २ अ तह अग्गभाव ३ कण्णिल्ले ४ । तत्तो अ जाउकण्णे ५ धणंजए ६ चेव बोद्धव्वे ॥ १ ॥ पुस्सायणे ७ अ अस्सायणे ८ अ भग्गवेसे ९ अ अग्गिवेसे १० अ । गोअम १९ भारद्दाए १२ लोहच्चे १३ चेव वासिट्ठे १४ ॥ २ ॥ ओमज्जायण १५ मंडव्वायणे १६ अ पिंगायणे १७ अ गोवल्ले १८ । कासव १९ कोसिव २० दब्भा २१ य चामरच्छाया २२ सुंगा २३ य ॥ ३ ॥ गोवल्लायण २४ तेगिच्छायणे २५ अ कच्चायणे २६ हवड़ मूले । ततो अबझिआयण २७ वग्घावच्चे अ गोत्ताई २८ ॥ ४ ॥ एसि णं भंते! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभिई णक्खत्ते किसंठिए पण्णत्ते ?
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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