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________________ सप्तम वक्षस्कार] [३७९ भी योग करते हैं, वे सात हैं १. कृत्तिका, २. रोहिणी, ३. पुनर्वसु, ४. मघा, ५. चित्रा, ६. विशाखा तथा ७. अनुराधा। अट्ठाईस नक्षत्रों में जो नक्षत्र सदा चन्द्रमा के दक्षिण में भी, नक्षत्र-विमानों को चीरकर भी योग करते हैं, वे दो हैं १. पूर्वाषाढा तथा २. उत्तराषाढा। ये दोनों नक्षत्र सदा सर्वबाह्य मण्डल में अवस्थित होते हुए चन्द्रमा के साथ योग करते हैं। अट्ठाईस नक्षत्रों में जो सदा नक्षत्र-विमानों को चीरकर चन्द्रमा के साथ योग करता है, ऐसा एक ज्येष्ठा नक्षत्र है। नक्षत्रदेवता १९०. एतेसि णं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभिई णक्खत्ते किंदेवयाए पण्णत्ते ? गोयमा ! बम्हदेवया पण्णत्ते, सवणे णक्खत्ते विण्हुदेवयाए पण्णत्ते, धणिट्ठा वसुदेवया पण्णत्ता, एए णं कमेणं णेअव्वा अणुपरिवाडी इमाओ देवयाओ-बम्हा, विण्हु, वसू, वरुणे, अय, अभिवद्धी, पूसे आसे, जमे, अग्गी, पयावई, सोमे, रुद्दे, अदिती, वहस्सई, सप्पे, पिउ, भगे, अज्जम, सविआ, तट्ठा, वाउ, इंदग्गी, मित्तो, इंदे, निरई, आउ, विस्सा, य, एवं णक्खत्ताणं एआ परिवाडी णेअव्वा जाव उत्तरासाढा किंदेवया पण्णत्ता ? गोयमा ! विस्सदेवया पण्णत्ता। [१९०] भगवन् ! इन अट्ठाईस नक्षत्रों में अभिजित् आदि नक्षत्रों के कौन-कौन देवता बतलाये गये गौतम ! अभिजित् नक्षत्र का देवता ब्रह्मा बतलाया गया है। श्रवण नक्षत्र का देवता विष्णु बतलाया गया है। धनिष्ठा का देवता वसु बतलाया गया है। पहले नक्षत्र से अट्ठावीसवें नक्षत्र तक के देवता यथाक्रम इस प्रकार हैं १. ब्रह्मा, २. विष्णु, ३. वसु, ४. वरुण, ५. अज, ६. अभिवृद्धि, ७. पूषा, ८. अश्व, ९. यम, १०. अग्नि, ११. प्रजापति, १२. सोम, १३. रुद्र, १४. अदिति, १५. बृहस्पति, १६. सर्प, १७. पितृ, १८. भंग, १९. अर्यमा, २०. सविता, २१. त्वष्टा, २२. वायु, २३. इन्द्राग्नी, २४. मित्र, २५. इन्द्र, २६. नैर्ऋत, २७. आप तथा २८. तेरह विश्वेदेव। उत्तराषाढा-अन्तिम नक्षत्र तक यह क्रम गृहीत है। अन्त में जब प्रश्न होगा-उत्तराषाढा के कौन देवता हैं तो उसका उत्तर है-गौतम ! विश्वेदेवा उसके देवता बतलाये गये है। नक्षत्र-तारे १९१. एतेसिंणं भंते ! अट्ठावीसाए णक्खत्ताणं अभिईणक्खत्ते कतितारे पण्णत्ते ?
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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