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________________ भी लिखा है। आचार्य अभयदेव ने स्थानांगवृत्ति में महार्णव शब्द को उपमावाचक मानकर उसका अर्थ किया है कि विशाल जलराशि के कारण वह विराट् समुद्र की तरह थी। पुराणकाल में भी गंगा को समुद्ररूपिणी कहा है। २ वैदिक दृष्टि से गंगा में नौ सौ नदियां मिलती हैं । २ जैन दृष्टि से चौदह हजार नदियाँ गंगा में मिलती हैं, ' जिनमें यमुना, सरयू, कोशी, मही आदि बड़ी नदियाँ भी हैं। प्राचीन काल में गंगा नदी का प्रवाह बहुत विशाल था। समुद्र में प्रवेश करते समय गंगा का पाट साढ़े बासठ योजन चौड़ा था, और वह पाँच कोस गहरी थी। वर्तमान में गंगा प्राचीन युग की तरह विशाल और गहरी नहीं है। गंगा नदी में से और उसकी सहायक नदियों में से अनेक विराटकाय नहरें निकल चुकी हैं, तथापि वह अपनी विराटता के लिये विश्रुत है। वैज्ञानिक सर्वेक्षण के अनुसार गंगा १५५७ मील के लम्बे मार्ग को पार कर बंग सागर में गिरती है। यमुना, गोमती, सरयू, रामगंगा, गंडकी, कोशी और ब्रह्मपुत्र आदि अनेक नदियों को अपने में मिलाकर वर्षाकालीन बाढ़ से गंगा महानदी अठारह लाख घन फुट पानी का प्रस्राव प्रति सैकण्ड करती है। " बौद्धों के अनुसार पाँच बड़ी नदियों में से गंगा एक महानदी है। दिग्विजय यात्रा में सम्राट् भरत चक्ररत्न का अनुसरण करते हुए मागध तीर्थ में पहुँचे। वहाँ से उन्होंने लवणसमुद्र में प्रवेश किया और बाण छोड़ा। नामांकित बाण बारह योजन की दूरी पर मागधतीर्थाधिपति देव के वहाँ पर गिरा। पहले वह क्रुद्ध हुआ पर भरत चक्रवर्ती नाम पढ़कर वह उपहार लेकर पहुंचा। इसी तरह चक्ररत्न के पीछे चलकर वरदाम तीर्थ के कुमार देव को अधीन किया। उसके बाद प्रभासकुमार देव, सिन्धुदेवी, वैतादयगिरि कुमार, कृतमालदेव आदि को अधीन करते हुए भरत सम्राट ने षट्खण्ड पर विजय-वैजयन्ती फहराई। नवनिधियां सम्राट् भरत के पास चौदह रत्नों के साथ ही नवनिधियां भी थी, जिनसे उन्हें मनोवांछित वस्तुएं प्राप्त होती थीं। निधि का अर्थ खजाना है। भरत महाराज को ये नवनिधियां, जहाँ गंगा महानदी समुद्र में मिलती है, वहाँ पर प्राप्त हुई। आचार्य अभयदेव के अनुसार चक्रवर्ती को अपने राज्य के लिये उपयोगी सभी वस्तुओं की प्राप्ति इन नौ निधियों से होती है। इसलिये इन्हें नवनिधान के रूप में गिना है। वे नवनिधियां इस प्रकार हैं १. (क) स्थानाङ्गवृत्ति ५। २।१ (ख) बृहत्कल्पभाष्य टीका ५६१६ २. स्कन्दपुराण, काशीखण्ड, अध्याय २९ ३. हारीत १७ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, वक्षस्कार ४ ५. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति , वक्षस्कार ४ ६. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, वक्षस्कार ४ ७. हिन्दी विश्वकोश, नागरी प्रचारिणी सभा, गंगा शब्द ८. (क) त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र १।४ (ख) स्थानांगसूत्र ९ । १९ (ग) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, भरतचक्रवर्ती अधिकार, वक्षस्कार ३ (घ) हरिवंशपुराण, सर्ग ११ (ड) माघनंदी विरचित शास्त्रसारसमुच्चय, सूत्र १८, पृ. ५४ .. ९. स्थानांगवृत्ति, पत्र २२६ [४१]
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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